भोजपुर इलाके में एक ठे बाभन रहलन । पढ़ल लिखल औ विद्वान । पूजा पाठ औ जजमानी कइके इज्जत औ सन्तोष के साथ आपन गुजर करत रहलन । वाकी न जाने भाग ओनके दगा देहलेस, कि भगवान ओनकर परिच्छा लेत रहलन। हैजा के बीमारी फइलल त घर के कुल परानी भगवान के पास पहुँच गइलन औ भाग अइसन कि मतहाई में ओनकर दूनों अ खियों जात रहल ।
वाभन देवता के मन दुनिया से उचट गइल। ऊ कूल छोड़ि-छाडि के जंगल में तपस्या करे लगलन। तिजहरिया के ऊ जंगल से निकल के एक ठे चौरस्ता पै आय के बइठ जाँय । आवत-जात मुसाफिर जवन कुछ दे दें, ऊ ओनके वदे काफी रहे। भगवान ओनके इहाँ तक पहुँचाय देहलन, वाकी ओनके कब्बों भगवान से कउनो सिकायत नाहीं रहल।
एक दिन राजा ओही जंगल में सिकार खेलै अइलन । राजा के लस्कर देख के एक ठे हरिना आपन जीव लेके परायल । राजा के अमला फइला हरिना के पीछे घोड़ा धउड़ाय देहलन। ओही वखत ऊ वाभनों रोज मतिन चौरस्ता पं वइठल रहलन ।
सबसे पहिले एक ठे सिपाही वाभन के लग्गे पहुँचलन । ऊ वाभन के देखते पूछलेस-‘हरे सुरवा हरिना केहर गइल ? बाभन एक ओर हाथ उठाय देहलन ।
थोडिके देर में सूबेदारो पहुँचलन । ऊहो वाभन के देख के पुछलन’हे सूर हरिना केहर गयल ।’ बाभन देवता एक ओर हाथ उठाय के कहलन कि-‘हरिनो एहरे गवल है आउर सिपाहियो।’
सुवेदार के आगे बढ़त देर नाहीं भयल कि राजा के मंत्री के घोड़ा वाभन के लग्गे वमक गयल-मंत्री पूछलन- ‘सूरदास हरिना केहर गयल ।’
सूरदास ओनहू के हाथ उठाय के बताय देहलन, अउर
कहलन’ महाराज हरिना के पीछे सिपाही, सूबेदार और मंत्रियो एहरे गइलें ह ।
राजा एतना सुनके अचकचाय गइलन। ऊ घोड़ा से उतर गइलन औ सूरदास के पैंजरे पहुँच के पुछलन-सूरदास जी तु देख त नाहीं पकता, वाकी सिपाही. सूबेदार औ मंत्री के आउर हम्मे कइसे वीन्ह गइला।’
जवान से’ सूरदास कहलन । ‘हरे सुरवा कहके पूछे वाला सिपाही जइसन छोटे दरजा के अदमी होय सकेला। हे सूर जे कहलेस ऊ जरूर सिपाही से ऊँच ओहदा वाला सूबेदार रहल होई। आ मन्त्री अइसन ऊँच अदमी दुसरौ के इज्जत करे जानलन। जे सूरदास कहलेस ऊ मन्त्री से कम न रहल होई। औ सूरदास जी कहै वाला राज हो सकला। अदमी जेतने ऊँच ओहदा पं होला ओकर जवान ओतने मोलायम होला।’
राजा सूरदास के बुद्धी ५ लटू हो गइलन। ऊ जिद्द कइके औ मनाय के सूरदास के अपने राजधानी में लियाय गइलन। सूरदास के रहै औ पूजापाठ वदे एकठे मन्दिर में इन्तिजाम कयल गयल। ओनके खाये पीये वदे दस रुपया महीना बंध गयल, जउने में से दुइये रुपया में ओनकर काम चल जाय। भजन कीर्तन में सूरदास के दिन मजे में बीत लगल ।
एक दिन राजा के ईहाँ घोड़ा के एकठे सौदागर आयल । ओकरे पास एकठे अइसन घोड़ा रहल, जवने के जे देखे देखते रहि जाय । ओकर तड्यारी अइसन रहल कि पीठी पैसे माछी विछलाय जाय । राजा के दरवारी लोगन के राय में ऊ जनावर राज के सवारी लायक रहे। घोड़ा राजा के सामने हाजिर कयल गयल । राजा के मन में न जाने का आयल ऊ कह वइठलन कि सूरौदास के राय ले लेवल जाय। ई सुनके सबके अचरज भयल । भला आंन्हर भेभर घोड़ा के हाल का जानी।
वाकी राजा के वात के काट सकला। सूरदास बोलावल गइलन । ऊ घोड़ा के पुठ्ठा औ पेट टोवलन त मुस्कियाय देहलन। ओकरे वाद ओकर मुंह औ कान टोअलन। फिर राजा के पंजरे आय के कहलन कि ई घोड़ा आप लायक नाहीं बाय।
राजा त चुप रहलन, बाकी रिसालदार पुछलन कि काहे ? सूरदास कहलन-‘सवार वोलावा, अपने मालूम होय जाई।’
तुरतै सवार बोलावल गइल। घोड़ा के जीन कसायल। सवार जइसहीं घोड़ा के पीठ पे चढ़के लगाम थमलेस घोड़ा अइसन उड़ल कि देखवइयन के झाँई आवे लगल । रिसालदार मुस्कियाय के सूरदास के ओर तकलन । तबले त चारो ओर हउरा मच गयल । घोड़ा सवार के लेहले नदी में पइठ गयल। रिसालदार औ सौदागर दूनों के मुँह लटक गयल।
राजा सूरदास से पूछलन- ‘तू कइसे जनला कि घोड़ा में ई दोस वाय।’
सूरदास कहलन-‘जब हम घोड़ा के पेट टोअली त एतना गरमी मिलल कि हम त बुझलीं कि हमें आन्हर जानके भैसा के घोड़ा वताय के देखावल जात हो। एही से हमें हँसियों आइ गयल रहे, वाकी जब मुंह टोअली त पतियाये के पड़ल कि ई भैंसा नाहीं घोड़े हौ।’
सूरदास कहत गइलन- ‘ई घोड़ा त जरूर हो वाकी दूध भैंसी के पिपले हो। एसे जव ई पानी देखी त ओम्मन पइठले बिना ना मानी।
राजा ई सुन के सौदागर से सही वात बतावे के कहलन । सौदागर हाथ जोड़ के ठाढ़ हो गयल। कहलेस- ‘सरकार ई वात ठीक हौ। जव ई घोड़ा के जनम भयल ओही समय एकर मतारी मर गइल । हमार एकठे भैइसों ओही बखत वियाइल रहे। औ संयोग अइसन
कि भैइस के पाड़ा मर गइल। भैइसिया सोरह सेर दूध देत रहल,
जवन कुल ई घोड़वै पियलेस।’
राजा सूरदास के बुद्धि पर एतना खुस भइलन कि ओनके मिल वाले तनखाह में एक रुपिया के तरक्की कय देहलन।
कुछ दिन वितले के वाद राजा के बियाह बदे पड़ोस के राजा के ईहाँ से वाभन आयल । राजा के फेर न जाने का सूझल कि ऊ कह बहठलन कि पहिले सूरदास लड़िकी देख आवें। दरबारी लोग फेर चकरायल। मंत्री कहलन कि सूरदास भला लडिकी के कइसे देखिहैं। वाकी राजा के मुंह से निकलल वात टर कइसे सकत रहल
सूरदास लड़िकी के वाप के राज में पहुँचलन। राजकुमारी ओनके सामने ली आवल गइलिन । राजकुमारियो एही सोच में डूवल रहलिन कि जेके अँखिये नाहीं वाय ऊ देखी कइसे। तवले सूरदास कुसल छेम पूछ देहलन । राजकुमारी क धियान त दुसरी ओर उड़ल रहल। ऊ सुन ना पउलीं। कह उठलीं-आँय’।
सूरदास फेर उहे सवाल कइलन औ जवाव सुनके लवटि अडलन । राजा जव ओनसे लड़िकी के बारे में पुछलन, सूरदास कहलन कि अकेले में वताइव । राजा के हुकुम से जव सवलोग उहाँ से हट गयल त सूरदास कहलन- वियाह जात में होला। तू वनिया आउर ऊ धुनियाँ त वियाह कइसे होई।
राजा त ई सुनते लाल हो गइलन। राजा नंगी तलवार लेहले अपने मतारी के लग्गे पँहुलन । राजा रोवे लगलन । ऊ मतारी से कहलन कि ठीक-ठीक वताय दा कि हम केकर बेटवा हई’, नाहीं तs आरन गला काट के मर जाव।
ओनकर मतारी देखलिन कि अव वतवही के पड़।। ऊ कहलिन कि हम्मै कउनो लड़िका नाहीं होत रहल। राजौ एसे बहुत दुखी रहलन । त हम्मे एकठे उपाय सूझल। एकठे वनिया के घरे लड़िका भयल। हम अपने दाई के भेज के आपन हार देके ओ वनिया के लड़िका के नार समेत मँगाय लेहली औ ओही लड़िका के लेके सवरी में वइठ गइली। सब जगह ई जान के खसी मनावल गयल कि रानी के लड़िका भयल । औ वनिया के घरे एकठे पुतरा वनाय के नदी में वहाय देवल गयल औ ई कह गयल कि लड़िका जनमते जात रहल। ओही वनिया के लड़िका तू हउवा।
ई सुनके राजा के जइसे अँखिये टॅगाय गयल। ऊ मतारी के गोडे गिर पड़लन। उहाँ से उठके ऊ सोझे सूरदास के पास गइलन । ओनसे पुछलन कि सूरदास जी आप कइसे जनला कि हम वनिया हई?
सूरदास कहलन-‘राजा जहिया हम घोड़ा के असलियत परख के वतउली, औ आप इनाम में हमरे तनखाह में एक रुपया के तरक्की कइला, ओही दिन हम जान गइली कि आप बनिया हउवा। काहे से जे राजा के जनमल रहल होता त ओतना पै दस-पाँच गाँव इनाम में दे देता घाघ कहले वाटन-
‘वनिया क सखरज, ठकुरे के हीन। वइदे क पूत व्याधि नहिं चीन्ह। पंडित चुप चुप बेसवा मइल । कहे घाघ पाँचों घर गइल।’
राजा ई सुनके अइसन लजइलन कि फेर ओन्हें ई पूछे के हियावे ना परल कि राजकुमारी धूनियाँ कइसे रहल। ऊ दरवार में जायके सूरदास के नांवे दस गांव लगाय देवे के हुकुम मंत्री के सुनाय देहलन।
(इ कहानी ईश्वरचन्द्र सिनहा जी भोजपुरी कहानी- संग्रह गहरेबाजी से लिहल गइल बा।)