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हमेशा सोच समझ के काम करीं।

बुरा समय में सोच समझ के काम करे के चाहीं। धीरज राखीं आ जल्दबाजी से बची, ना त समस्या अउरी बढ़ सकेला। छोट-छोट सावधानी से आपके बड़ परेशानी से बचावल जा सकता। अगर रउरा केहू से प्रतिकूल समय में मदद मांगे के बा त सोच समझ के मांगी। काहे कि परेशानी कम समय के होला आ एहसान आजीवन हो जाला।

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हमेशा सोच समझ के काम करीं।

बुरा समय में सोच समझ के काम करे के चाहीं। धीरज राखीं आ जल्दबाजी से बची, ना त समस्या अउरी बढ़ सकेला। छोट-छोट सावधानी से आपके बड़ परेशानी से बचावल जा सकता। अगर रउरा केहू से प्रतिकूल समय में मदद मांगे के बा त सोच समझ के मांगी। काहे कि परेशानी कम समय के होला आ एहसान आजीवन हो जाला।

एही पे आधारित एगो कहानी बा जउन एह तरे बा–

रउआँ के खुद क्रिया में अधिकार बा, कबो क्रिया के परिणाम में, काहें से कि ऊ रउआँ के वश में नइखे; अपना काम के फल के आशा से काम करे के झुकाव ना होला, तब काम छोड़े के प्रवृत्ति ना होला, माने कि आपन कर्तव्य निभावत रहे के।

कर्ण के रथ के चक्का जब जमीन में फंस गईल त उ रथ से उतर के ठीक करे लगले। ओह घरी उ बिना हथियार के रहले…भगवान कृष्ण तुरंत अर्जुन के आदेश देले कि कर्ण के बाण से मारल जाए।

अर्जुन भगवान के आदेश मान के कर्ण के निशाना बना के एक के बाद एक तीर चलावत रहले। जवन कर्ण के बुरी तरह चुभत निकलल आ कर्ण जमीन पर गिर गइलन ।

मरला से पहिले जमीन पर गिरल कर्ण भगवान श्रीकृष्ण से पूछले,

“का रउरा भगवान हई ? का तू दयालु बाड़? का ई राउर न्यायसंगत फैसला बा! निहत्था आदमी के मारे के आदेश दिहल?

सच्चिदानंदमाय भगवान श्रीकृष्ण मुस्कुरा के जवाब देले, “अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु भी चक्रव्यूह में निहत्था हो गईल रहले, जब सब लोग मिल के उनुका के बेरहमी से मार देले रहले, त आप भी ओमे रहनी। तब कहाँ राउर ज्ञान रहे? इहे कर्म के इनाम ह। ” इहे ह हमार न्याय ।”

सोच समझ के काम करीं। अगर आज केहू के दुख देनी त ओकर अनादर करीं, केहू के कमजोरी के फायदा उठाईं। उहे कर्म भविष्य में रउरा खातिर इंतजार करत रही आ शायद रउरा के इनाम जरूर दी।

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