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जयंती विशेष : मिजाजिया शायर रहले फिराक गोरखपुरी

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फ़िराक़ गोरखपुरी एगो अइसन शायर रहले जे अपना शायरी आ अपना अलहदा अंदाज़ से हर उम्र के लोगन के आपन मुरीद बना देत रहन। उनकर शायरी आ उनकर अलमस्त मिज़ाज के बारे में बातचीत कइल जइसे कन्नौज से आइल , सबसे मंहग लाख रुपया किलो वाला कवनों इत्र के भरल महफ़िल में खुल गइल होखे। ऐसे अंदाज़ और ऐसे मिज़ाज की ख़ुशबू से जुदा होना बेहद मुश्किल है।

फ़िराक़ साहब के जन्म 28 अगस्त 1896 ई. को गोरखपुर में भइल आ इनकर आगे के यात्रा में ऊ अपना जीवन में बहुत कुछ खोवले।

 कम से कम मौत से ऐसी मुझे उम्मीद नहीं

        ज़िंदगी तू ने तो धोके पे दिया है धोका

ई फ़िराक़ साहब के जीवन के हक़ीक़त बयानी ही हs, उनकर भोगल सच बा जवन ऊ कहत बाड़े कि आदमी के आखिरी उम्मीद मौत से ही बा, ई ज़िन्दगी तs हर तरह से फ़रेब करेले, धोका देवे ले , ख़्वाब तुड़ेले। जीवन के हक़ीक़त के लिखल ई ख़ुदरंग शायर के ख़ास अंदाज़ रहे जवन ऊ उर्दू शायरी के दुनिया में केतना शायर लोग से अलगा ला के खड़ा करेला।

 

न कोई वा’दा न कोई यक़ीं न कोई उमीद

           मगर हमें तो तिरा इंतिज़ार करना था

 

फ़िराक़ साहब जवन रास्ता के चुनले, ऊ तेज तूफ़ानन के खिलाफ़ चलत शायरी के ज़मीन तक चहुंपा देवे। एह यात्रा से सबसे ज़्यादा जेकरा फ़ायदा भइल ऊ ख़ुद उर्दू शायरी रहे। ई बात कवनो तरह से नज़रअंदाज़ नइखे कइल जा सकत कि उर्दू शायरी के लम्बा इंतज़ार के परिणाम ही रहे की ओकरा फ़िराक़ जस युग निर्माता शायर के साथ मिलल।

शायरी के दुनिया में अंजोरिया लेके चलत शायर फ़िराक़ उर्दू शायरी के ऊ ज़रूरी जगहन के नुमाया कइले जवना के बदले, सुधारे भा जवना मे नयापन के सबसे बेसी ज़रूरत रहे। साहित्य के हर विधा में कुछ समय बाद चीजन के दोहरावे के होला। अइसे में नयापन लावल साहित्य के ठहरावे से रोके के सबसे ज़रूरी ख़ुराक बा। फ़िराक़ साहब के शायरी नया शायरी के प्रवाह से उर्दू ग़ज़ल में अइसे ही गैर-ज़रूरी दोहराव से बचावत नया क्षितिज पs लिया खड़ा कइलस।

 

   आने वाली नस्लें तुम पर फ़ख़्र करेंगी हम- असरो   

  जब भी उन को ध्यान आएगा तुम ने ‘फ़िराक़’ को देखा है

 

फ़िराक़ साहब के घर के बहरी पूछे खातिर ढेर लोग रहे। बाकी घर के भीतर ऊ बहुत अकेला रहन । घर आवते उनका के पूछे वाला केहू ना रहे । एही उदासी आ अकेलापन के संगे जीएल उनकरा ला एकमात्र विकल्प रहे। एहि बात के भी ऊ खूब समझत रहन , ऊ एह अकेलापन आ उदासी के छुपावे के तमाम कोशिश भी कइले। उनकर ई कोशिश के एगो मुकम्मल तरीका रहे अपना अगल बगल से जुड़ के। हर पहर आ हर घड़ी के संगे ऊ एगो अलग रिश्ता बना लेत रहन।

एक बेर केहू उनका से ख़ुद-नविश्त (आत्मकथा) लिखे के फरमाइश कइलख तs ऊ भड़क उठले। ऊ आजतक डायरी ना लिखले रहन की जीवन में का चल रहल बा । एह बात पs उनकर भड़कल तय रहे।

फ़िराक़ साहब बोलले “साहब अपने-नविश्त लिखे के का मतलब बा? हमरा पोटली में बा का जवन दुनिया के दिखाएंम? केहू के आत्मकथा लिखा सकत बा तs ऊ एगो पोस्टमैन के, एगो क्लर्क के भा एगो आम अनपढ़ इंसान के लिखा सकत बा। हम रउवा का खाके ख़ुद-नविश्त लिखेंम सs। बुझनी रउवा ! दु कौड़ी के तजर्बे नइखे आ चलनी ख़ुद-नविश्त लिखे। बड़ तीस मार खां बनल बानी। हमरा संगे ई फ्रॉड नइखे चल सकत ! ई जवन कुछ हम लिखेनी आ कहेनी, आखिर ई का हs ? कबों सोचले बानी, हम का उम्र भर झक मरले बानी । ख़ुद-नविश्त ! ख़ुद-नविश्त ! आखिर ई कवन चिड़िया के नाम हs ? बताइ ! जवाब दीही !”

 

साभार – इन्तिख़ाब फ़िराक़ गोरखपुरी (रेख़्ता)

 

 

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