आजु मनावल जा रहल बा अक्षय नवमी, आंवला के गाछ के होई पूजा-अर्चना
अक्षय नवमी आजु बुधवार के मनावल जा रहल बा। अइसन मान्यता बा कि एह दिन आंवला के वृक्ष के पूजा अउर एकरे नीचे भोजन बनावे अउर ग्रहण कइले से शुभ फल के प्राप्ति होल। स्नान, पूजन, तर्पण अउर अन्नादि के दान से अक्षय फल मिलsला।
एह दिन भगवान लक्ष्मी नारायण के पूजन के भी विधान ह। वाराणसी से प्रकाशित हृषीकेश पंचांग के अनुसार, दो नवंबर के नवमी तिथि के मान संपूर्ण दिन अउर रात्रि 10 बज के 53 मिनट ले बा। एह दिन धनिष्ठा नक्षत्र रात्रि शेष चार बजकर छह मिनट अउर मित्र नामक औदायिक योग भी बा, जौन आपसी सौहार्द बढ़ावे वाला ह।
ई ह महत्व
हिंदू धर्म के सबसे बड़ अनुष्ठान में एक अक्षय नवमी के भी मानल गइल बा। अक्षय नवमी के दिन कइल दान चाहे कौनो धर्मार्थ कार्य के लाभ व्यक्ति के वर्तमान अउर अगले जन्म में भी प्राप्त होला। पौराणिक कथा के अनुसार, अक्षय नवमी के दिन सतयुग प्रारंभ भइल रहे। एकरे सथही एक अन्य कल्प में एही दिन त्रेतायुग के भी प्रारंभ भइल रहे। एही दिन के कौनो भी पुण्य कार्य खातिर अनुकूल अउर शुभ समय मानल जाला।
पूजन विधि
एह दिन सुबह उठ के स्नानादि के बाद दाहिने हाथ में जल, अक्षत, पुष्प आदि ले के व्रत के संकल्प लेईं। एकरे बाद धात्री गाछ (आंवले) के नीचे पूरब दिशा के ओर मुख के बइठीं। ‘ऊॅ धात्र्यै नम:’ मंत्र के जप करत षोडशोपचार पूजन कर आंवला के वृक्ष के जड़ में दूध से जलाभिषेक करत पितर के तर्पण करीं। साँझ के आंवले के गाछ नीचे घीव के दीपक जलाईं अउर वृक्ष के सात बेर परिकरमा करीं। जब परिक्रमा पूरा हो जाय त परसादी बांटीं अउर गाछ के नीचही भोजन भी करीं।
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