रावण के महिमामंडन में अझुराइल नयका ब्राह्मण समाज

कुमार आशू
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लागत बा कि कुछ नयका ब्राह्मण समाज रावण के ही वंशज हो गइल बा का दो। महिमामंडन त अईसे कर रहल बारऽ लोग जईसे पापी रावण ना रामजी रहनीं। मार के गलती कर दिहलें।

जो रे नीच, अहंकारी, निर्बुद्धि पड़वा सन। परशुराम भूमिहार हो गइलें! राम राजपूत! कृष्ण यादव! आ अब इ रावणवा ब्राह्मण! वाह!
जात से ऊंच बने में केतना नीचे गिर गइला लोगिन। एकर कुछ अनुमान भी बा तोहनी के।

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सप्तर्षि समाज भी ब्राहम्ण रहे जेकरा से समस्त मानव जाति के कुल गोत्र के निर्माण भइल। हजारों लाखों ओजस्वी तेजस्वी ब्राह्मण बा लोग और रहे जेकर प्रताप ब्रह्माजी से भी कहीं अधिक बा। जवन ब्राह्मण ऋषि कश्यप से देवता, दैत्य आ मानव जाति के उत्पति आ विस्तार भइल! जवन ब्राह्मण से ब्राह्मण ग्रंथ यानि वेद के सत-ज्ञान ग्रंथ के आधारशिला रखाइल,ओकरा पर त तोहनी के कहियो गर्व ना भइल। आ भईल रहित त सनातन समाज के आज ई दुर्गतिये ना होईत। अमेरीका आ लंदन से आ के इहां भारत में रह के अंग्रेज के लईका सन सीता राम आ राधे कृष्ण करऽ तारन सन, आ तोहनी के जय लंकेश! लंकाधिपति रावण! रावण हूँ मैं ! करऽ तारन सन। धिक्कार बा!

करम प्रधान बिस्व करि राखा!

खाली ब्राह्मण आ क्षत्रीय कुल में जनम ले लेहला से कोई पूजनीय आ महान ना हो जाला। कर्म करे के पड़े ला रे पपिया सन। आज अधिकांश ब्राह्मण आ क्षत्रीय समाज के नयका छोकड़ा सन चिलम पी के, खुद के शिवजी के परम भक्त आ रावण जइसन अपना आप के प्रकाण्ड ज्ञानी बूझ ले तारन सन। मुर्गा आ मटन के बिना त एकनी के मुंह में लार ना बने।

ब्राह्मण जात से ना, कर्म से पुजाला। ब्राह्मण से बड़ा ब्रह्मा भी ना होलें यदि ब्राह्मण ज्ञानी बारें। ब्राह्मण के अर्थ भी पता बा तोहनी के। कालनेमी आ रावण मत बनs सन! ना त जातीय अहंकार में रावणो से गइल गुजरल हाल हो जाई पूरा सनातन समाज के खाली तोहनी के चलते।

आ नयका वर्ग के बिगड़े में कहीं न कहीं हमनी के बड़ बुजुर्ग के आपन दायित्व और कर्तव्य के प्रति उदासीनता बहुत बड़का कारक बा। जवन समाज के सबसे उच्चतम कुल के नयका पीढ़ी के अइसन निम्नतम और तुच्छ मानसिकता होखे उ समाज के भविष्य के विकास आ प्रगति के बारे में सोंचल भी अपराध बा! एहसे रउआ बड़ लोग से हाथ जोड़ के बिनती बा कि जागीं लोगन। आ नयका बैल सन के लतियाईं, कूटीं, लसारीं! बाकिर रावण आ कालनेमि मत बने दीहिं। ना त कुल खानदान सहित पूरा सनातन धर्म के ही नास दिहन सन ई पड़वा सन।

एकनी के रावण बनल cool और sexy लागत बा! आ सीताराम कहे में लाज। काहे कि राम बने के न त एकनी के कौनो औकात बा और न ही दूर दूर तक कौनो संभावना नजर आवत बा। जवन राम के नाम भगवान शिवजी आठो याम जपत रहनी, उ राम के नाम से ज्यादा रावण के नाम के कीर्तन करऽ तारऽ लोगिन।

राम जी के छोड़ऽ सन एगो रामभक्त बने तक के पात्रता नइखे तोहनी के। काहे कि राम के पूजे खातिर श्रद्धा, भक्ति आ विश्वास चाहीं, अहंकार नाहि उपकार के भाव चाहीं।

जवना के तोहनी में दूर दूर तक लेश मात्र भी प्रतीक नइखे। अहंकारी, दंभी आ व्यसनी विचार भरल बा तऽ रावणे के नू पूजबऽ सन।
जेकरा शिव पंचाक्षर मंत्र तक के ज्ञान ना हो,, उ अपना आप के रावण आ प्रकांड ज्ञानी पंडित कह रहल बा। मूढ़ता आ निर्लज्जता के एहसे बड़ उदाहरण दोसर का होई।
करऽ सन जय लंकेश जय रावण !
आवे काल बिनासे बुद्धि !

नोट:- ई आलेख मन में कौनों दुर्भाव के बिना निष्पक्ष आ निष्पाप रूप से आपन वर्तमान पीढ़ी के दिन ब दिन बढ़त नीचता और वरिष्ठ व विद्वत पीढ़ी के अकर्मण्यता पर सवाल उठावे खातिर लिखाइल बा। एकरा के जातीय व राजनैतिक रूप देवे के कोई कोशिश ना करी। माफ़ करेम लोग! संस्कारिक घाव होखला पर ओकरा के शारीरिक घाव खानी ही पोसला के बजाय ओकर तत्काल समुचित उपचार करके, खिल-मवाद निकाल के, संस्कार और ज्ञान रूपी मरहम पट्टी करे के परेला। ना तऽ कैंसर आ कोढ़ रूपी दुर्विचार से जात, कुल आ समाजे ना, पूरा के पूरा सभ्यता के समूल नास हो जाला। अब साँच कड़वा होला त होला। घाव भरे खातिर मिठास ना कड़वापन ही आवश्यक हऽ। फिर भी हमार इ आलेख से यदि केहू के मन आहत भइल होखे तऽ हाथ जोड़ के क्षमाप्रार्थी बानी।

बाकि हमरा के उन्मादी कहके, हमके मारके, आ चाहे माफ करके हमरा उपर उपकार या एहसान कइला के बजाय हमार लिखल बात पर विचार करीं लोग आ हमर उठावल प्रश्न के उत्तर देवे के कृपा करके आपन कर्तव्य आ दायित्व के निर्वहण करीं लोग। आ राष्ट्र, धर्म और सभ्यता के नास होखे से बचाईं लोग!

एगो आहत सनातनी
– प्रखर ‘पुँज’

नोट – ई लेखक के आपन विचार ह।

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