गोरखपुर समाचार : जानीं गुरु गोरक्षनाथ के खिचड़ी चढ़ावे के परंपरा कब आ कइसे शुरू भइल?
खपुर समाचार : जानीं गुरु गोरक्षनाथ के खिचड़ी चढ़ावे के परंपरा कब आ कइसे शुरू भइल?
गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर में खिचड़ी चढ़ावे के परंपरा सदियन पुरान ह। इहाँ के खिचड़ी मेला के प्रसिद्धि देश-विदेश में बा। मंदिर के सचिव द्वारका तिवारी के कहल बा कि किदंवतियन के मुताबिक त्रेतायुग में अवतार अउरी सिद्ध गुरु गोरक्षनाथ भिक्षाटन के दौरान हिमाचल के कांगड़ा जिला के मशहूर ज्वाला देवी मंदिर में गईल रहले। देवी प्रकट होके गुरु गोरक्षनाथ के भोजन खातिर बोलवली।
ओहिजा के भ्रष्ट अन्न देख गोरक्षनाथ कहले, हम त खाली भीख मांगला से मिलल चाउर आ दाल के स्वीकार करेनी। एही पर देवी कहली कि हम पानी गरम क के चाउर-दाल पकाव तनी। तू भीख मांग के चाउर मसूर ले आवऽ।
उ बतवले कि गुरु गोरक्षनाथ उहाँ से भीख मांगत हिमालय के तराई में स्थित गोरखपुर आईले। उहाँ ऊ आपन अक्षय भीख कटोरा राप्ती आ रोहिणी नदी के संगम पर एगो सुरम्य जगह पर रख के ध्यान में डूब गइलन।
एही बीच खिचड़ी के परब आ गईल, एगो तेजस्वी योगी के ध्यान करत देख के लोग उनुका भीख के कटोरा में चाउर-दाल डाले लगले, लेकिन उ अक्षय पात्र रहे। एही से उ भरबे नाही करे। एकरा के सिद्ध योगी के चमत्कार मान के लोग अभिभूत हो गईल। तब से गोरखपुर में बाबा गोरखनाथ के खिचड़ी चढ़ावे के परंपरा चल रहल बा।
खिचड़ी मेला एक महीना तक चलेला
द्वारका तिवारी के कहल बा कि मंदिर परिसर में मकर संक्रांति से शुरू होके खिचड़ी मेला करीब एक महीना तक चलेला। एह दौरान पड़े वाला हर अतवार आ मंगलवार के आपन महत्व होला। आजकल उहाँ भारी संख्या में भक्त आवेले। चूँकि ई उत्तर भारत के प्रमुख धार्मिक आयोजनन में से एगो ह।
गोरखनाथ खिचड़ी मेला।
एही से खिचड़ी मेला में पूरा उत्तर भारत से लाखों लोग आवेला। एहमें से अधिकतर नेपाल-बिहार आ पूर्वांचल के दूर-दूर के इलाका से लाखों श्रद्धालु खिचड़ी चढ़ावे आवेलें। केहू बाबा से आपन मन्नत पूरा करे में आपन विश्वास जतावेला त केहू मन्नत मांगे आवेला। ई प्रक्रिया सदियन से जारी बा।
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