काशी में चार धाम यात्रा, चार दिना में पूरा होइ जाला
चार धाम क खातिर कभी-कभी उमर अउर सेहत भी चार धाम क लंबी, कठिन यात्रा क अनुमति नाही देत. अइसन स्थिति में काशी में चार धाम क यात्रा आसानी से कयल जाइ सकयला.
आदि शंकराचार्य देश में चारों दिशा में चार ठे पावन धाम क स्थापना कइलन. सनातन धर्म में मान्यता हौ कि इ चार धाम क यात्रा कइले से मनुष्य के मुक्ति मिलि जाला. हर हिंदू धर्मावलंबी क इच्छा रहयला कि उ चारों धाम क यात्रा अपने जिनगी में कइ लेय. लेकिन चार धाम यात्रा बदे पइसा अउर समय दूनों क जरूरत पड़यला. हर आदमी के लिए इ संभव नाही होइ पावत. कभी-कभी उमर अउर सेहत भी चार धाम क लंबी, कठिन यात्रा क अनुमति नाही देत. अइसन स्थिति में काशी में चार धाम क यात्रा आसानी से कयल जाइ सकयला. मान्यता हौ कि काशी में चार धाम यात्रा से भी उहय फल मिलयला, जवन फल वृहद चार धाम क यात्रा कइले से मिलयला. एही बदे कहल जाला कि काशी पहुंचि गइला त समझि ल कुल तीरथ होइ गयल.
उत्तराखंड के चमौली जिला में विराजमान भगवान बद्रीनाथ, उड़ीसा के पुरी जिला में विराजमान भगवान जगन्नाथ, गुजरात के द्वारका जिला में विराजमान भगवान द्वारकाधीश अउर तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिला में विराजमान भगवान रामेश्वर महादेव के चार धाम कहल जाला. चार धाम क इ वृहद रूप हौ. एकरे अलावा चार धाम क एक ठे सूक्ष्म रूप भी हौ, अउर इ उत्तराखंड में मौजूद हौ. यमुनोत्री, गंगोत्री, बद्रीनाथ अउर केदारनाथ क दर्शन चार धाम के सूक्ष्म रूप के तहत कयल जाला.
विष्णु अउर भगवान शिव क दर्शन
चार धाम में भगवान विष्णु अउर भगवान शिव क दर्शन होला. काशी में चार धाम यात्रा क शुरुआत अस्सी महल्ला से होला. असी नदी क एही स्थान पर गंगा में मिलन भयल हौ. एही कारण से महल्ला क नाम अस्सी पड़ल हौ. अस्सी में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र अउर सुभद्रा क मंदिर स्थित हौ. काशी में भगवान जगन्नाथ क इ मंदिर 200 साल से भी जादा पुराना हौ. मंदिर पूरी तरह से पुरी के जगन्नाथ मंदिर क रूप हौ. मंदिर में भगवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई बलभद्र अउर बहिन सुभद्रा के साथे विराजमान हयन. मंदिर क निर्माण भोंसला स्टेट क दुइ ठे श्रद्धालु विसंभर राम अउर बेेनी राम 1802 ईस्वी में करउले रहलन. बाद में 1806 ईस्वी में पुरी जगन्नाथ मंदिर क मुख्य पुजारी स्वामी ब्रह्मचारी काशी प्रवास पर रहलन. एह दौरान उ काशी में रथयात्रा क शुरुआत करउलन. ओकरे बाद से हर साल इहां भगवान जगन्नाथ क रथयात्रा निकालल जाला. पूरे तीन दिन तक रथयात्रा क मेला चलयला. जवने इलाके में रथयात्रा निकलयला, ओकर नाम ही अब रथयात्रा पड़ि गयल हौ.
द्वारकाधीश क मंदिर
काशी में चार धाम यात्रा क अगला पड़ाव भगवान द्वारकाधीश क मंदिर हौ. शंकुलधारा तलाब के पास श्रद्धालु भगवान द्वारकाधीश क दर्शन करयलन. मंदिर में द्वारकाधीश क जवन मूर्ति विराजमान हौ, उ जमीन से अपने आप निकल हौ. मंदिर के पास स्थित कुंड के शंकुलधारा तलाब कहल जाला. शंकुलधारा कुंड क जिक्र स्कंदपुराण के काशी खंड में हौ. द्वापर युग में शंकु अउर बंकु दुइ ठे राक्षस रहलन. दूनों इहां के तलाब में रहत रहलन. दूनों के आतंक से धरती कांपत रहल. दूनों राक्षसन के अत्याचार से मुक्ति बदे देवी-देवता भगवान कृष्ण से प्रार्थना कइलन. भगवान कृष्ण एही स्थान पर मल्लयुद्ध में शंकु अउर बंकु क बध कइलन अउर दूनों क उद्धार होइ गयल. ओकरे बाद से तलाब क नाम शंकोद्धार पड़ि गयल. बाद में नाम बिगड़ि के शंकुलधारा होइ गयल. शंकु-बंकु के बध के बाद जब भगवान कृष्ण वापस जाए लगलन तब देवी-देवता लोग भगवान से विनती कइलन कि प्रभु आप एही ठिअन रहि के काशी के लोगन क रक्षा करय. देवतन क आग्रह मानि के भगवान एही स्थान पर विराजमान होइ गइलन. एही के नाते इहां मौजूद द्वारिकाधीश मंदिर क मान्यता असली द्वारिकाधीश मंदिर से कवनों मामले में कम नाही हौ. जब जगन्नाथ भगवान क रथयात्रा निकलयला त ओकर पहिला पड़ाव एही ठिअन होला. भगवान जगन्नाथ अउर द्वारकाधीश क इहां मिलन होला, ओकरे बाद रथ यात्रा आगे बढ़यला. शंकुलधारा तलाब के पूरब तरफ शंकुड़ेश्वर महादेव क मंदिर हौ. मान्यता हौ कि शंकु राक्षस भगवन शिव क आराधना करय बदे एह शिवलिंग क स्थापना कइले रहल.
रामकुंड
द्वारकाधीश क दर्शन कइले के बाद श्रद्धालु चार धाम यात्रा के तीसरे पड़ाव के तहत रामकुंड पहुंचयलन. लक्सा इलाके के अयोध्यापुरी में मौजूद रामेश्वर धाम में रामेश्वर महादेव क दर्शन कयल जाला. मान्यता हौ कि इहां मौजूद शिवलिंग क स्थापना स्वयं भगवान राम अपने काशी यात्रा के दौरान कइले रहलन. एह के नाते जवन फल रामेश्वरम क दर्शन कइले से मिलयला, उहय फल इहां दर्शन से मिलि जाला. मंदिर के पास मौजूद रामकुंड बहुत सुंदर हौ. श्रद्धालु कुंड में स्नान करयलन, अउर फिर रामेश्वर महादेव क दर्शन करयलन. चारधाम यात्रा क समापन गंगा तट पर मौजूद बद्रीनारायण घाट पर बद्रीनारायण मंदिर में दर्शन से होला. ब्रदीनारायण मंदिर के नाते ही घाट क नाम बद्रीनारायण घाट पड़ल हौ. हलांकि ई घाटे के महता घाट भी कहल जाला.
नर-नारायण तीर्थ
गायघाट के पास स्थित एह स्थान पर नर-नारायण तीर्थ क मान्यता हौ, जवने क जिक्र काशी खंड में मौजूद हौ. एही कारण से इहां बद्रीनारायण मंदिर क महातम हौ. मौजूदा मंदिर क निर्माण 19वीं सदी में नेपाल क राणा शमशेर बहादुर करउले रहलन. मंदिर उत्तराखंड में स्थित बद्रीनाथ मंदिर क प्रतिरूप हौ. चार धाम यात्रा करय वाले श्रद्धालु इहां पहुंचले के बाद पहिले गंगा नहान करयलन अउर फिर भगवान बद्रीनारायण क दर्शन करयलन. बद्र्रीनारायण मंदिर के पास में ही घाट पर नागेश्वर महादेव क मंदिर हौ. एह मंदिर के दर्शन से भी बहुत पुन्य मिलयला. काशी में चार धाम यात्रा के दौरान हर धाम पर रात्रि विश्राम करय क परंपरा हौ. रात्रि विश्राम के बाद सबेरे स्नान कइके फिर अगले धाम बदे श्रद्धालु प्रस्थान करयलन. एह तरह से काशी में चार धाम क यात्रा चार दिना में पूरा होइ जाला, अउर फल उहय मिलयला, जवन वृहद चार धाम क यात्रा कइले से मिलयला.
( लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और ये उनके निजी विचार हैं.)
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