भगवान राम के प्रवास स्थल प गोड़ धोवला से कटेला सारा पाप पूर्णिमा के दूसरका दिन लागेला बरवाघाट मेला
प्रितम सिंह, मशरक सारण :- आस्था आ परंपरा के परिपाटी से जुड़ल सारण जिला के मशरक प्रखण्ड के बरवाघाट में घोघारी नदी के तट प कइयन दशकन से कार्तिक पूर्णिमा के दूसरका दिन लागे वाला बड़वाघाट मेला आधुनिकता के चकाचौंध के बादो आपन पुरातन पहचान के कायम रखले बा। जनश्रुतियन के मोताबिक वनवास के दौरान भगवान राम इहां प्रवास कइलें रहलेंं। तब गंडक के पावन धारा के पार क के आगे के यात्रा पूरा कइलें रहस।
अइसन मान्यता बा कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन इहां गोड़ धोवला से सब पाप धुल जाला। एह परंपरा के आजो लोग कायम रखले बा। नदी के तट प बरवाघाट में स्थापित ऐतिहासिक रामजानकी मंदिर 18वीं सदी के बनल बा। एह ऐतिहासिक मंदिर के बारे में बहुत सारा जनश्रुतिय प्रचलित बा। कार्तिक पूर्णिमा के दूसरा दिन इहां विशाल मेला लागेला। अइसन कहानी प्रचलित बा कि वनवास के दौरान भगवान राम इहां आइल रहस आ खुद से एह मंदिर के निर्माण कइले रहस।
1983 से पहिले एह मंदिर के गुंबज में सोना के त्रिशूल लागल रहे जवना से डकैत लोग काट लेले स। उफनत नदी के मुहान प जब डकैत सीढ़ी लगाके मंदिर के गुंबद से सोना के त्रिशूल काटत रह स तब हजारन के संख्या में ग्रामीण चारों तरफ से डकैतन के घेरले खाड़ रहे लो। ऊफनती नदी के धारा के फायदा उठाके डकैत भाग निकलले स।
2015 में स्थानीय ग्रामीणन के सहयोग से एह मंदिर के जीर्णोद्धार भइल रहे। मंदिर के गुंबज प पिछला बरिस वज्रपात भइल अगरी-कगरी के इलाका के लोग दैवीय चमत्कार मानेला। एह मेला में कृषि उत्पाद आ घरेलू सामग्री के बिक्री बेसी होला। एह मेला के कबो सुथनिया मेला त कबो पियक्करन के मेला के नामकरण मिलल। बाकिर आजो एगो बात सबका जुबान प होला “सगरो के नहान आउर बरवा घाट के गोरधोवन के महत्व एके होला।
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