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Ujjain: सावन के चउथा सोमवार… भास्मा आरती में गूंजत जय श्री महाकाल; जलाभिषेक आ पूजा कइला के बाद के श्रृंगार देखीं

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 उज्जैन : सबसे पहिले गर्भगृह के जलाभिषेक आ भगवान के पूजा से सजावल गइल आ ओकरा बाद भस्म आरती कइल गइल। मंदिर में भगवान के दर्शन शुरू होते ही जय श्री महाकाल के गूंज चारो ओर गूंजे लागल।

आज श्रावण शुक्ल पक्ष के अष्टमी तिथि पर बाबा महाकाल रात के 2.30 बजे जाग के विश्व प्रसिद्ध श्री महाकालेश्वर मंदिर में अपना भक्तन के दर्शन देले। भास्मा आरती से पहिले वीरभद्र आ मनभद्र से अनुमति लेके सबसे पहिले चांदी के दरवाजा खोलल गइल, ओकरा बाद घंटी बजा के भगवान के जानकारी दिहल गइल कि पुजारी आ बाकी लोग उनका के जगावे खातीर मंदिर में प्रवेश करतारे। सबसे पहिले गर्भगृह के जलाभिषेक आ भगवान के पूजा से सजावल गइल आ ओकरा बाद भस्म आरती कइल गइल। मंदिर में भगवान के दर्शन शुरू होते ही जय श्री महाकाल के गूंज चारो ओर गूंजे लागल।

विश्व प्रसिद्ध श्री महाकालेश्वर मंदिर के पुजारी पंडित आशीष पुजारी बतवले कि शुक्ल पक्ष के अष्टमी के दिन श्रावण महीना के चउथा सोमवार के आज सबेरे तीन बजे भगवान वीरभद्र के अनुमति से मंदिर के दरवाजा खोलल गइल। जवना के बाद सबसे पहिले भगवान के शुद्ध पानी से नहा दिहल गइल, पंचामृत स्नान के संगे-संगे केसर वाला पानी चढ़ावल गइल। आज के श्रृंगार के खासियत ई रहे कि आज बाबा महाकाल के भांग, मावा आ सूखा फल से सजावल गइल आ उनका के फूल के माला से सजावल गइल। मेकअप के दौरान त्रिपुंड, सूर्य आ चंद्रा के माथे पs भी सजावल गइल रहे। जेकरा बाद महानिर्वाणी आखरा द्वारा भस्म चढ़ावल गइल, जेकरा बाद पूरा मंदिर परिसर जय श्री महाकाल के गूंज से गुंजायमान हो गइल।

सीधी के घासिया बाजा डांस ग्रुप भगवान श्री महाकालेश्वर के चउथा सवारी में भाग लीही।

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के इच्छा के मुताबिक, आदिवासी लोक कला एवं बोली विकास अकादमी, मध्य प्रदेश संस्कृति परिषद के माध्यम से भगवान श्री महाकालेश्वर जी के सवारी में आदिवासी कलाकारन के एगो समूह भी 2019 के चउथा सोमवार के भाग लीही भगवान श्री महाकालेश्वर जी। 12 अगस्त के घासी आदिवासी घासिया बाजा नृत्य सीधी के उपेंद्र सिंह के नेतृत्व में उनकर मंडली श्री महाकालेश्वर भगवान के चउथा जुलूस में पालकी के सामने आपन प्रस्तुति दी, भजन समूह के साथे आपन प्रस्तुति दी। विन्ध्य मेकल क्षेत्र के प्रसिद्ध घासिया बाजा सीधी के बकबा, सिकरा, नचनी महुआ, गजरा बहरा, सिंगरवाल आदि गाँव में रहे वाला घासिया आ गोंड जनजाति के कलाकार लोग द्वारा कइल जाला।

एह नृत्य के उत्पत्ति के संबंध में किंवदंती बा कि ई नृत्य शिव के जुलूस में विभिन्न वनवासी लोग द्वारा कइल जाए वाला स्टंट के एगो रूप हs। जइसे शिव के जुलूस में राक्षस, मनुष्य, भूत, अलग-अलग प्रकार के जानवर आदि भाग लेत रहले। कुछ अइसने नकल एह नाच में भी कलाकार लोग करेला। एह नाच के कलाकार लोग एकरा के 12 गो अलग-अलग लय में प्रस्तुत करेला। ई लोग गुदुम बाजा, डफली, शेहनाई, टिमकी, मंदार, घुंघुना जईसन वाद्ययंत्र के प्रयोग करेले। साथ ही इनकर वेशभूषा बांडी, पजामा, कोटी आदि बा।

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