Jitiya Vrat 2022: धूमधाम से आज मनावल जा रहल बा निर्जला जितिया व्रत जानीं एकर पौराणिक कथा
संतान के उमिर बढ़ावे आ ओह लो के हर तरे के सुख उपलबध करावे के कामना वाली भावना के साथे महिला लोग एह व्रत के करेला लो। ई निर्जला व्रत होला। एह व्रत में नहाय खाय के परंपरा होला। कइयन गो राज्यन में एकरा के ‘जिउतिया’ कहल जाला। ई व्रत उत्तर प्रदेश समेत बिहार, झारखंड आ पश्चिम बंगाल में मनावल जाला।
काहे मनावल जाला जीवित्पुत्रिका व्रत
सबसे पहिले एह बात के जानल जरूरी बा कि जितिया के ई व्रत काहे खास बा? धार्मिक मान्यतन के मोताबिक, जेकर लमहर समय से संतान नइखे हो रहल, ओकरा खातिर जितिया के व्रत (Jitiya Vrat) तप के समान मानल जाला। संतान के उमिर बढ़ावे आ ओह लो के हर तरे के सुख उपलबध करावे के कामना वाली भावना के साथे महिला लोग एह व्रत के करेला लो। ई निर्जला व्रत होला। एह व्रत में नहाय खाय के परंपरा होला। कइयन गो राज्यन में एकरा के ‘जिउतिया’ कहल जाला। ई व्रत उत्तर प्रदेश समेत बिहार, झारखंड आ पश्चिम बंगाल में मनावल जाला।
कइसे कइल जाला जितिया?
जइसन कि पहिलही बता चुकल बानी कि माता लोग आपन संतान के लमहर उमिर आ ओकर रक्षा आ सफलता खातिर निर्जला उपवास रखेला लो। एह व्रत के उपवास में महिला लोग पानी ना पियेला लो। अइसन मान्यता बा कि जवन लोग संतान के कामना करेला ओकरो एह व्रत के कइला से जल्दी संतान प्राप्त होला। हिन्दू पंचांग के मोताबिक जितिया व्रत अश्विन मास के कृष्ण पक्ष के अष्टमी से लेके नवमी तिथि तक मनावल जाला। अबकि बेर ई उपवास 18 सितंबर के बा आ व्रत के पारण 19 सितंबर के होई।
का हs जितिया के चील आ सियारिन के व्रत कथा
धार्मिक मान्यतन के मोताबिक, जितिया व्रत के कथा बड़ रोचक बा। मान्यतानुसार, एगो नगर में कवनो वीरान जगे पs एगो पीपर के फेड़ रहे। एह फेड़ पs एगो चील आ एकरे नीचे एगो सियारिनो रहत रहे। एक बेर कुछ महिला के देखके दुनो जिऊतिया व्रत कइले सs। व्रत के दिनही नगर में एगो इंसान के मृत्यु हो गइल। ओकर शव पीपल के फेंड के स्थान पs ले आवल गइल। सियारिन ई देखके व्रत के बात भूल गइल आ मांस खा लेलस। चील पूरा मन से व्रत कइलस आ पारण कइलस। व्रत के प्रभाव में दुनो के अगिला जनम अहिरावती आ कपूरावती के रूप में भइल। जहां चील स्त्री के रूप में राज्य के रानी बनल आ छोट बहिन सियारिन कपूरावती ओहि राजा के छोटे भाई के मेहरी बनल। चील सात लईकन के जनम देलस जबकि कपूरावती के सारा लईका जनम लेते मर जाते रहे। एह बात से अवसाद में आके एक दिन कपूरावती सातों लईकन के माथा कटवा देलस आ घड़ा में बंद कs के बहिन के लगे भेजवा देलस।
भगवान जीऊतवाहन जिंदा कs देनीं सातों संतान
ई देख भगवान जीऊतवाहन माटी से सातों भाइयन के माथा बनवनी आ सभन के माथ के ओकनी के धड़ से जोड़के ओह पs अमृत छिड़क देनीं। आगिलके पल ओकनी में जान आ गइल। सातो जुवक जिंदा हो गइले आ घरे लवट अइले। जवन कटल माथा रानी भेजले रहली, ऊ फल बन गइल। जब बहुते देर तक ओकरा संतानन के मृत्यु में विलाप के स्वर ना सुनाई देलस तs कपुरावती खुदे बड़ बहिन के घरे गइल। उहां सभन के जिंदा देखके ओकरा अपना करनी के पश्चाताप होखे लागल। ऊ अपना बहिन के पूरा बात बतवलस। अब ओकरा अपना गलती पs पछतावा होत रहे। भगवान जीऊतवाहन के कृपा से अहिरावती के पूर्व जनम के बात इयाद आ गइल। ऊ कपुरावती के लेके ओहि पीपर के फेंड़ के लगे ले गइली आ ओकरा के सब बात बतवली। कपुरावती के उहवें हताशा से मौत हो गइल। जब राजा के एकर खबर मिलल तs ऊ ओहि जगे जाके पीपर के फेड़ के नीचे कपुरावती के दाह-संस्कार कs देले।
Comments are closed.