Shri Ram Mantra: एक दिन के पूजा में हनुमान जी के कइल चाहत बानी प्रसन्न, तs एह खास मंत्रन के करीं जाप

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मंगल के दिन हनुमानजी के समर्पित बा। एह दिन हनुमान जी के पूजा होला। साधक लोग भी मंगल के भगवान हनुमान के खातिर व्रत करेला। बल, बुद्धि आ ज्ञान के दाता भगवान हनुमान जी के कृपा से साधक के सब मनोकामना पूरा हो जाला। ज्योतिषी लोग के मुताबिक मंगलवार के भगवान हनुमान जी के पूजा कईला से साढ़ेसाती अवुरी शनि के ढैया के असर कमजोर हो जाला। एकरा खातिर भक्त भगवान हनुमान जी के विधिवत पूजा कs के खुश करेले। अगर आप भी भगवान हनुमान जी के खुश करे के चाहत बानी तs मंगल के पूजा के दौरान इ मंत्र के जप करीं। साथ ही राम स्तुति के पाठ करीं। कहल जाला कि हनुमान जी खाली राम के नाम याद कइला से खुश हो जालें। आइ जानल जाव-

1- मनोजवं मारुततुल्यवेगं, जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्

वातात्मजं वानरयूथमुख्यं, श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये॥

 

2- ”अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं

ज्ञानिनामग्रगण्यम्।

सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं रघुपतिप्रियभक्तं

वातजातं नमामि॥”

 

3- ॐ आपदामप हर्तारम दातारं सर्व सम्पदाम,

लोकाभिरामं श्री रामं भूयो भूयो नामाम्यहम !

श्री रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे

रघुनाथाय नाथाय सीताया पतये नमः

 

4– हे रामा पुरुषोत्तमा नरहरे नारायणा केशवा।

गोविन्दा गरुड़ध्वजा गुणनिधे दामोदरा माधवा॥

हे कृष्ण कमलापते यदुपते सीतापते श्रीपते।

बैकुण्ठाधिपते चराचरपते लक्ष्मीपते पाहिमाम्॥

 

5- नाम पाहरु दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट।

लोचन निजपद जंत्रित जाहि प्राण केहि बाट।।

श्रीराम स्तुति:

श्रीरामचंद्र कृपालु भजमन हरण भव भयदारुणं।

नवकंज-लोचन, कंज-मुख, कर-कंज पद कन्जारुणं।।

कंदर्प अगणित अमित छबि, नवनील-नीरज सुन्दरं।

पट पीत मानहु तड़ित रूचि शुचि नौमि जनक सुतावरं।।

भजु दीनबंधु दिनेश दानव-दैत्यवंश-निकंदनं।

रघुनंद आनंदकंद कोशलचंद दशरथ-नन्दनं।।

सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारू अंग विभूषणं।

आजानुभुज शर-चाप-धर, संग्राम-जित-खरधूषणं।।

इति वदति तुलसीदास शंकर-शेष-मुनि-मन-रंजनं।

मम ह्रदय-कंज निवास कुरु, कामादी खल-दल-गंजनं।।

मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सांवरो।

करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो।।

एहि भांती गौरि असीस सुनी सिय सहित हियं हरषीं अली।

तुलसी भवानिही पूजि पुनी पुनी मुदित मन मंदिर चली।।

।।सोरठा।।

जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।

मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे।।

।।सियावर रामचंद्र की जय।।🌺

 

 

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