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Kargil Vijay Diwas : कारगिल युद्ध के दौरान देशवासी जवानन के आपन खून से चिट्ठी लिखत रहले, युद्ध नायक कैप्टन अखिलेश सक्सेना ओ समय के हालात बतवले

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कारगिल विजय दिवस : 1999 में कारगिल के पहाड़ी पs पाकिस्तानी घुसपैठिया कब्जा कs लेले रहले। ओह लोग के भगावे खातिर भारतीय सेना ऑपरेशन विजय शुरू कइलस। ई ऑपरेशन 8 मई से शुरू भइल आ 26 जुलाई के खतम भइल। जवना में देश के कई जवान शहीद हो गइले।

हजारों फीट ऊँच कारगिल के बर्फीला पहाड़… ऊपर से दुश्मन के गोली बरसत… खड़ी चढ़ाई… आ… दिल में तिरंगा फहरावे के उत्साह… बीच के कारगिल युद्ध के 25 साल हो गइल भारत आ पाकिस्तान 1999 में, बाकी रिटायर्ड कैप्टन अखिलेश कारगिल युद्ध के याद आजो दिमाग में ताजा बा। युद्ध में अपना साथियन के बलिदान के बारे में सोच के उनकर आँख आजो लोर से भर जाला।

कारगिल युद्ध के दौरान कैप्टन अखिलेश सक्सेना राजपूताना राइफल्स से जुड़ल रहले। ऊ ऑपरेशन विजय के तहत सैनिकन के एगो समूह के नेतृत्व कइले। उनका साथे सैनिक लोग तोलोलिंग, दs हम्प आ थ्री पिम्पल्स हाइट्स पर सफलतापूर्वक कब्जा कर लेले रहे| हालांकि युद्ध के दौरान कैप्टन अखिलेश दुश्मन के गोली से बहुत घायल हो गइले अवुरी लगभग एक साल तक दिल्ली कैंट के बेस अस्पताल में भर्ती रहले।

रिटायर्ड कप्तान अखिलेश सक्सेना एगो इंटरव्यू में बतवले कि ऊ बचपन से सेना के वर्दी पहिरे के चाहत रहले आ तब से सफर शुरू भइल। ऊ बतावेले कि स्कूल के बाद उनका दिल्ली कॉलेज ऑफ आर्ट्स में एडमिशन मिलल। बाकी ए दौरान ऊ राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) के भी तैयारी करत रहले आ ऊ ओहमे पास हो गइले। ।

बियाह हो गइल अउरी ओकरा बाद ही युद्ध में जाए के फोन आइल।

अपना एनडीए के पल के याद करत कैप्टन अखिलेश कहले कि एनडीए आपके 3 साल के मेहनत हs, ए दौरान आप दोस्त बनावेनी जवन कि आपके संगे जीवन भर रहेले। हम 1995 से 1999 तक फिरोजपुर में तैनात रहनी आ फेर खबर आवे लागल कि सीमा पर कुछ गड़बड़ हो रहल बा। एही समय फरवरी 1999 में हमार बियाह हो गइल। हम आ हमार मेहरारू घर बसावे के तइयारी करत रहनी सs कि कारगिल युद्ध के खबर आवे लागल आ हम श्रीनगर, जम्मू-कश्मीर में पोस्ट हो गइनी।”

ऊ आगे कहत बाड़न कि जब हमनी का भारतीय सैन्य अकादमी (आईएमए) से पासआउट हो जानी सs तs तीन गो किरिया लेवे नि सs कि हमरा खातिर हमरा देश के रक्षा पहिले आवेला, ओकरा बाद हमनी के सैनिक साथी, अंत में आपन आ आपन परिवार के रक्षा। आ जब हमनी के वर्दी पहिरेनी सs तs शपथ लेवे नि सs कि हमनी के आपन तिरंगा के कबो झुके ना देब सs आ ओकरा के ऊँच राखे खातिर जवन भी त्याग करे के पड़ी ओकरा के करेंम सs।”

ओह पल के याद करत जब कैप्टन अखिलेश के कारगिल युद्ध में जाए के बारे में पता चलल तs ऊ कहले कि, हमरा लागल कि बहुत दिन से कवनो चीज़ के इंतजार करत बानी आ अचानक मिल गइल तs खुशी महसूस होई । हमरा के जब पता चलल कि हमरा जम्मू कश्मीर जाए के बा हमरा खुशी भइल हालांकि अभी हमार बियाह भइल रहे आ हमरा मन में आइल कि हमार पत्नी अभी तक सेना के माहौल में बसल नइखी, एहसे हम उनका से बात कइनी। शुरू में उ 1-2 घंटा तक डाउन रहली बाकी फिर कहली कि हम ए सफर में रउवा संगे बानी, एहसे रउवा आपन ड्यूटी पूरा करीं।”

ओह घरी कारगिल के हालत कइसन रहे?

कारगिल के स्थिति के बारे में कैप्टन अखिलेश कहले कि, कारगिल के पहाड़ी आ द्रास के पहाड़ी, ई एगो सड़क हs जवन कि श्रीनगर से लेह लद्दाख तक जाला जवना के एनएच 1 के नाम से जानल जाला। एह एनएच 1 के किनारे के पहाड़ी बहुत ऊँच पहाड़ी बाड़ी सऽ, जवन बहुत खड़ा बाड़ी सऽ। इहाँ कवनो पेड़-पौधा राउर आश्रय नइखे। जदी रउरा ऊपर चढ़ जाईं तs दुश्मन रउरा के ऊपर से आसानी से देख सकेलें। आ ओहिजा के तापमान माइनस 40 डिग्री तक पहुँच जाला, एकरा पर चढ़ल तs छोड़ीं, रउरा साँस लेबे में भी परेशानी होखे लागेला। एतना बर्फ आ ठंड बा कि सैनिकन खातिर सामान खाली हेलीकाप्टर से ओहिजा जा सकेला। 1999 के समय भारत आ पाकिस्तान दुनो आर्थिक रूप से बहुत सक्षम ना रहे। आ एही से एगो अलिखित समझौता भइल कि जाड़ा के समय दुनु देश में से कवनो देश शीर्ष पर ना रही, दुनु नीचे आ जाई आ जब गर्मी शुरू होखी तs दुनु सेना फेर से ऊपर चलि जाई।”

ऊ आगे कहतारे कि, “एह लोग के तब विंटर वैकेटेड पोस्ट कहल जात रहे। एहसे 1998 में जब भारत आपन पद खाली कइलस तs पाकिस्तान ई साजिश शुरू कs देलस। धीरे-धीरे ऊ लोग अपना हजारों सैनिक के बढ़ावे लागल। आ एक-दु महीना के भीतर ई सभ चोटी पs कब्जा कs लेले आ जब भारतीय सेना फेर से ऊपर चढ़े लागल तs पता चलल कि पाकिस्तान सब चौकी पर कब्जा कर लिहले बा आ ऊ लोग पूरा रूट पर माइंस लगा दिहले बा आ जब हमनी का आपन विश्लेषण कइनी सs तs हमनी के जीते के संभावना 2 प्रतिशत भी ना रहे।”

कैप्टन अखिलेश के कहनाम बा कि कवनो भी युद्ध में सबसे जादा जरूरी बा कि जवान के मनोबल बढ़ावल जाए। एकरा खातिर भारतीय अफसर लोग तरकीब निकलख। ऊ कहले कि, तोलोलिंग पs बहुत हमला भइल आ शुरू में हमनी के ओमे कवनो सफलता ना मिलल। काहे कि दुश्मन ऊपर बइठल रहे। जब हमनी के ऊपर गइनी सs तs हमनी के सोचनी सs कि हमनी के सैनिकन के मनोबल कइसे बढ़ावल जाव कि उहाँ से जिंदा वापस आवे के संभावना बहुत कम होखे। सबसे पहिले हमनी के राजपूत के परंपरा याद आ गइल। एह में का होला कि लड़ाई में जात घरी माथा पर केसर के कपड़ा बान्हत रहले जवन बहुते मुश्किल रहे, मतलब कि या तs हमनी के जीत जाइब जा या फिर ना लवटब जा ना। तs हमनी के मरे खातिर तैयार हो गइल रहनी सs।”

ऊ आगे कहतारे कि हमनी के दूसरा तरीका ई रहे कि हमनी के अफसर अपना सैनिक के छोड़ के आगे आ गइले। अक्सर अइसन होला कि अफसर बीच में रह जालें। बाकी ए झगड़ा में सब अफसर मोर्चा से अगुवाई कइले कि जदी पहिला गोली आई तs हमनी के लाग जाई। एह युद्ध में एतना अफसर घायल होके शहीद हो गइले। कैप्टन विक्रम बत्रा हो, विजयंत थापर साहेब, मेजर आचार्य, सब लोग मोर्चा से अगुवाई करत रहे।”

कैप्टन अखिलेश आगे कहतारे कि ऊ जवानन से कहले कि ऊ देश भर के लोग के चिट्ठी पढ़स। ऊ कहले कि, तीसरा काम हमनी के कइनी कि हमनी के बेस में बईठल रहनी। अचानक देखनी कि पास में एगो बैग राखल बा। जवना में भारत भर के लोग अलग-अलग चीज भेजले रहले, जवना में राखी, चिट्ठी, फूल, सब कुछ शामिल रहे। हम अपना सब सिपाही के बोला के पढ़े के शुरू कइनी। तs पहिला चिट्ठी ग्रेजुएशन करत एगो लइकी के लिखल रहे कि हमरा कवनो भाई नइखे, हम तोहरा के राखी भेजत बानी, रउआ हमार भाई हईं आ एह देश के इज्जत तोहरा हाथ में बा। हमनी खातिर ई बहुत भावुक पल रहे। एकरा बाद जब हम दूसरा चिट्ठी खोलनी तs एगो नवही के खून में लिखल रहे, जवना में ऊ लिखले रहले कि उहो देश खातीर कुछ कइल चाहतारे। बाकी हम सेना में शामिल ना हो पवनी। बाकी हम जहां रहब, अपना देश खातीर जवन हो सकता, उहे करब। हमनी के आपन सेना पर विश्वास बा एगो अउरी चिट्ठी हमनी के एगो बुढ़िया माई के लिखल रहे जवना में ऊ कहले रहली कि रउआ लोग हमार बेटा नियन बानी आ हम सिर्फ अपना बेटा के आशीर्वाद दे सकतानी। पूरा देश हमनी के संगे रहे। लड़ाई में ई छोट-छोट चीज़ के बहुत बड़ भूमिका होखेला।’

कैप्टन अखिलेश के कहनाम बा कि जब हमनी के तोलोलिंग पहुंचनी सs तs हमार कुछ साथी लोग शहादत के प्राप्ति क चुकल रहे, कुछ लोग घायल भइल रहे, कुछ लोग गोली से चपेट में आइल रहे, हमनी के 2 दिन तक भूखे-प्यासल लड़ाई लड़त रहनी सs। जब हम ऊपर जात रहनी तs ना खाना लेत रहनी ना पानी, खाली गोली आ बारूद लेत रहनी। बाकिर ओह दिन ओह तिरंगा तक पहुँचे खातिर कवनो छोट बलिदान ना रहे। आ सबका में एतना जोश रहे कि गोली चलला के बाद भी लोग भारत माता के जय चिल्लात रहे। हमरा लागता कि हम अपना जीवन में चाहे जवन भी करीं, उहे हमरा जीवन के सबसे बड़ पल रहे आ होई।

कैप्टन अखिलेश बतावत बाड़न कि जब भारतीय सैनिक तोलोलिंग पर झंडा फहरवले तs पहाड़ के चोटी पर बइठल पाकिस्तानी लगातार बमबारी आ गोलीबारी शुरू कर दिहले। कैप्टन अखिलेश कहले कि, जब हमनी के तोलोलिंग पs झंडा फहरावनी तs पाकिस्तान खिसिया गइल, फेर ऊ लोग हमनी पs एतना गोलीबारी कइले कि जवन यूनिट हमनी खातीर खाना लेके आवत रहे ऊ नीचे रुक गइल। तब हमनी के समझ में ना आइल कि का करे के बा। तब हम सोचनी कि जदी दुश्मन इहाँ तीन महीना से बईठल बा तs ओकनी के रसोई भी इहाँ होई। हमनी के ऊ के गईल। उहाँ हमनी के एगो छोट संरचना देखनी सs आ हमनी के मान लिहनी जा कि इहे दुश्मनन के रसोईघर होई। हमनी के पीछे आपन बैग पैक कs के जय भारत माता कहत दौड़े लगनी सs। जब हम ओह रसोईघर में पहुँचनी तs पता चलल कि दुश्मनन के अपना जीत पर अतना भरोसा बा कि ऊ लोग उत्सव के पूरा तइयारी कर लिहले बा । हलवा, बिरयानी, सूखा फल उहाँ राखल जात रहे। हम सब भर के अपना सिपाही के दे देनी। आ हमनी का पाकिस्तान के हलवा के सबसे अपना जीत के जश्न अइसहीं मनवनी सs।”

युद्ध में बहुत घायल होखला के चलते कप्तान अखिलेश समय से पहिले रिटायर हो गइले। युद्ध के मौका आ ओ समय के याद करत ऊ कहले कि, जब हमरा हाथ में गोली लागल तs हम सैनिक के ना बतवनी, काहेंकी एकरा से उनकर मनोबल कम हो सकता। एक समय आइल जब हम बेहोश होखे लगनी आ फेर कहनी कि हमरा अपना देश खातिर जिंदा रहे के बा। आ हम ओह जगह से उतरे लगनी। नीचे आवे में 5 से 6 घंटा लागल।

ऊ आगे कहत बाड़न कि कहल जाला कि रउरा कबो कवनो सिपाही से सेना ना निकाल सकीलें। हमरा लागत बा कि एगो सिपाही के रूप में हमार जिम्मेदारी अबहीं ले खतम नइखे भइल। आज भी हमरा लागत बा कि एह देश के जनता के बतावल हमार जिम्मेदारी बा कि जवान आ देश के सेना केतना बलिदान देले बा। आजादी हवा जइसन होला जवना के हमनी के तबले जरूरी ना मानेनी सs जबले मिलत रहेला। हमनी के एकर मूल्य के एहसास तब होला जब हमनी के लगे ना रह जाला। जदी रउरा अपना सिपाही के ताकत बने के बा तs जवन काम कर रहल बानी ऊ ईमानदारी से करीं ।जय हिन्द !”

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