गोरखपुर : “धर्मदेव सिंह आतुर के सब गीतन में अद्भुत चित्रात्मकता बा। एकरा काव्य में आत्म पक्ष आ जनपक्षधरता के अद्वितीय संतुलन बा। जीवन के सब रंगन आ स्वरन के सलीका से समेटलें बाड़ें आतुर।” ई बात अभिव्यक्ति के अप्रतिम काव्य गोष्ठी में प्रमुख समीक्षक के रूप में पधारल गोरखपुर विश्विविद्यालय के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. अनिल राय कहलें।
गोष्ठी के पहिला सत्र में भोजपुरी के मूर्धन्य कवि धर्मदेव सिंह आतुर के सारस्वत सम्मान, काव्य पाठ आ उनकर काव्य यात्रा पs समीक्षात्मक चरचा कइल गइल। चरचा क्रम में कविलोक के संयोजक राजेश राज कहलें कि आतुर भोजपुरी माटी के कवि हवे। जब माटी, माटी से जुड़ल रहेला तs पौधा के पूरा ऊँचाई देला, गमला में आके बढ़न्ती रुक जाला। एह बहाने जुवा पीढ़ी के अपना माटी आ मूल विधा से जुड़े के सलाह देले। नर्वदेश्वर सिंह ‘मास्टर साहेब’ के अध्यक्षता आ शशिविन्दु नारायण मिश्र के संचालन में आयोजित गोष्ठी के मेजबानी संस्थाध्यक्ष डॉ. जय प्रकाश नायक अपना चिलमापुर इस्थित आवास पs कइलें।
एह दौरान कवि लोगन के रचना पाठ भइल
गुंजा गुप्ता ‘गुनगुन’ आपन सशक्त उपस्थिति दर्ज कइलें –
सारे वादों का पुल मैं गिरा आई हूँ
रेत पर घर बनाना नहीं चाहती
जैसी भी है मेरी झोपड़ी है भली
झूठे महलों में जाना नहीं चाहती
सलीम मजहर दिलकश समां बंधलें-
जो तुमने शोख़ नज़र से न देखा होता मुझे
तो शे’र कहने का मुझको हुनर नहीं आता
श्वेता सिंह विशेन छंद में प्रेम रस घोरली –
बनो तुम फूल मैं उसमें सिमटकर गंध हो जाऊँ
बनो तुम गीत मैं उसमें समाहित छंद हो जाऊँ
पवन पाण्डेय प्रेम काव्य पढ़लें –
तुम पर इतने गीत लिखे हैं, तुमको गीत बनाया है
प्यार किया जाता है कैसे, तुमने मुझे सिखाया है
नित्या त्रिपाठी फरमवली –
नहीं दफ़्तर है ये, कोल्हू है समझो
यहाँ इंसान जोता जा रहा है
निखिल पाण्डेय हिंदी गजल के नया आयाम देलें-
जंगल मत बेचो सेठों को
धरती का आँचल रहने दो
रिंकी प्रजापति आस के ज्योति जरवली –
बहुत ज़रूरी है, ज़िन्दगी जीने के लिए
‘चाह’ और ‘मुस्कुराने की वजह’
विनोद निर्भय गीता सार के शेरन में ढललें –
कहा था कृष्ण ने अर्जुन! यही है सार जीवन का
सभी निष्काम कर्मों में ख़ुशी का वास होता है
कमलेश मिश्रा अभिव्यक्ति में प्रवेश कइलें-
शहर में आपके मैं पहली बार आई हूँ
लग रहा है यूँ जैसे बार-बार आई हूँ
शैलेन्द्र पाण्डेय असीम के वसंत गीत खूब सराहल गइल –
महकने लगे दिग-दिगन्त, शायद वसन्त आ गया
भाव उठे मन में अनन्त, शायद वसन्त आ गया
डा. हिमांशु पाण्डेय के रचना जीवन दर्शन पs केंद्रित रहे –
ये जीवन भी कुछ ऐसा ही है यारो!
जले बिन दीप भी कहाँ यहाँ उजाला भरता है.
कृष्णा श्रीवास्तव चिंता व्यक्त कइलें –
शब्द की पीड़ा न समझे, हो रहे अति क्रूर हम
अर्थ को ही व्यर्थ करके, हो रहे मगरूर हम
वसीम मजहर गोरखपुरी बहुते खूबसूरत नज्म पढ़लें –
ख़्वाब में आकर मुझको खिलाए लड्डू मोतीचूर के
मेरी अम्मा लोरी सुनाए चंदा मामा दूर के
शाकिर अली शाकिर हौसला के हवा देलें –
सफर में लाख दुश्वारी हो लेकिन हार मत मानो
वो मंज़ पा नहीं सकता जो थककर बैठ जाता है
उस्ताद शायर सरवत जमाल काव्यक्रम के आश्चर्यजनक ऊँचाई देलें –
महाभारत में अबके कौरवों ने शर्त ये रख दी
बिना रथ युद्ध होगा, सारथी का क्या भरोसा है
सृजन गोरखपुरी के शेर काव्य सत्र के अंतिम आयाम देलें –
इस दुनिया में हर कोई अपना किरदार निभाता है
आग जलाती है पानी को, पानी आग बुझाता है
एह लोगन के अलावे गोष्ठी में नर्वदेश्वर सिंह ‘मास्टर साहब’, वीरेंद्र मिश्र दीपक, धर्मेंद्र त्रिपाठी, शशिविन्दु नारायण मिश्र, सुभाष चन्द्र यादव, ओमप्रकाश आचार्य, डा. अजय राय अनजान, सुधीर श्रीवास्तव, प्रेमनाथ मिश्र, राजू मौर्य, अजय यादव आदि तीन दर्जन साहित्यकार उपस्थित रहल लो। आभार ज्ञापन संस्थाध्यक्ष डाॅ. जय प्रकाश नायक कइलें।
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