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पुण्यतिथि पे विशेष: अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ के रचना में विविध शैली आ पूरा रस के समायोजन बा

पुण्यतिथि पे विशेष : साहित्य के ऊपर ले जाए वाला ओह साहित्य के निर्माता दुनिया में अमर बाड़े। आदरणीय कविवर हरिऔध जी अयीसन साहित्य के रचना कईले बाड़े, जवना से देश के विकास में मदद मिलल बा।

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पुण्यतिथि पे विशेष: अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ के रचना में विविध शैली आ पूरा रस के समायोजन बा

पुण्यतिथि पे विशेष : साहित्य के ऊपर ले जाए वाला ओह साहित्य के निर्माता दुनिया में अमर बाड़े। आदरणीय कविवर हरिऔध जी अयीसन साहित्य के रचना कईले बाड़े, जवना से देश के विकास में मदद मिलल बा।

काव्यात्मक विशेषता हरिऔध जी विभिन्न विषय पे कविता के रचना कइले बानी। ई उनकर खासियत ह कि ऊ कृष्ण-राधा, राम-सीता से जुड़ल विषय के साथे-साथे आधुनिक समस्या के लेके ओह पे आपन विचार नया तरीका से प्रस्तुत कइले बाड़न। प्राचीन आ आधुनिक अभिव्यक्ति के मिश्रण से उनकर कविता में एगो अद्भुत चमत्कार पैदा भइल बा।

15 अप्रैल 1865 के आजमगढ़ के निजामाबाद कस्बा में जनमल अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध के पिता के नाम भोलासिंह अउरी महतारी के नाम रुकमणि देवी रहे। हरिऔध जी अस्वस्थता के चलते स्कूल में पढ़ाई ना क पवले, एहसे उ घर में उर्दू, संस्कृत, फारसी, बांग्ला अउरी अंग्रेजी के पढ़ाई कईले।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी हरिऔध जी के हिन्दी साहित्य के इतिहास में परिचय करावत घरी लिखले बाड़न- “हालांकि उपाध्याय जी एह समय खड़ी बोली आ आधुनिक विषय के चर्चित कवि हउवन, बाकिर शुरू में ई पुरान शैली के श्रृंगारी कविता बहुते सुन्दर अउर सरल करत रहले ह|

 

अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ जी के सम्मान

हिंदी साहित्य सम्मेलन के सभापति (1922), हिंदी साहित्य सम्मेलन के चौबीसवा अधिवेशन (दिल्ली, 1934) के सभापति, 12 सितंबर 1937 ई. के नागरी प्रचारिणी सभा, आरा के ओर से राजेंद्र प्रसाद के ओर से अभिनंदन ग्रंथ भेंट (12 सितंबर 1937), ‘प्रियप्रवास’ पे मंगला प्रसाद पुरस्कार (1938)

कार्यक्षेत्र 

खड़ी बोली के पहिला महाकाव्य हरिऔध जी के सृजनकाल हिंदी के तीन युगन में विस्तृत बा-

• भरतेन्दु युग

• द्विवेदी युग

• छायावादी युग

‘प्रिय प्रवास’ हरिऔध जी के सबसे प्रसिद्ध आ महत्वपूर्ण किताब ह। ई हिन्दी खरी बोली के पहिला महाकाव्य ह। एकरा के मंगलप्रसाद पुरस्कार मिलल बा|

अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ जी के रचना

ठेठ हिन्दी का ठाठ, अधखिला फूल, ‘हिन्दी भाषा आ साहित्य के विकास’ आदि ग्रंथन के रचना भी कइले बानी| लेकिन मूल रूप से उहाँ के कवि रहनी।उनकर उल्लेखनीय ग्रंथन में शामिल बा: -प्रिय प्रवास (1914 ई .), कवि सम्राट, वैदेही वनवास (1940 ई .), पारिजात (1937 ई .),रस-कलश (1940 ई .), चुभते चौपदे (1932 ई.), चोखे चौपदे (1924 ई .), ठेठ हिंदी का ठाठ, अधखिला फूल, रुक्मिणी परिणाम, हिंदी भाषा और साहित्य का विकास, वेनिस का बाँका, बाल साहित्यसंपादित -बाल विभव ,बाल विलास, फूल पत्ते,चन्द्र खिलौना, खेल तमाशा, उपदेश कुसुम, बाल गीतावली,चाँद सितारे, पद्य प्रसून|

एही से हरिऔध जी के भूमिका हिन्दी कविता के विकास में एगो आधारशिला जइसन बा। हिन्दी में संस्कृत छंदन के सफलतापूर्वक प्रयोग कइले बानी। संस्कृत वर्णमाला में ‘प्रियप्रवास’ के रचना करके, जहाँ ‘हरिऔध’ जी खरी बोली के पहिला महाकाव्य देले रहले, दूसरा ओर आम हिंदुस्तानी बोलचाल में ‘’चोखे चौपदे’, आ ‘चुभते चौपदे’ के रचना करके उर्दू के शक्ति के मुहावरा के भी रेखांकित कइले |

16 मार्च 1947 के अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ 76 साल के उमिर में एह दुनिया के छोड़ दिहलन|

कहें क्या बात आंखों की, चाल चलती हैं मनमानी

सदा पानी में डूबी रह, नहीं रह सकती हैं पानी

लगन है रोग या जलन, किसी को कब यह बतलाया

जल भरा रहता है उनमें, पर उन्हें प्यासी ही पाया।

 

 

 

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