Captain Saurabh Kalia: 22 दिन बाद जब पाक सौरभ के शव लौटवलख तs परिवार पहचान ना पाइल , चेहरा पs न आंख रहे ना कान
जब कैप्टन सौरभ कालिया दुश्मन के सामना कइले तs कालिया आ उनका साथी के गोलीबारी में गोली खतम हो गइल। मदद के पहुंचे से पहिले दुश्मन सब उनका के पकड़ लेलख। एकरा बाद अमानवीय अत्याचार के अंतहीन सिलसिला शुरू हो गइल।
महज 22 साल के उमिर में देश खातिर आपन जान देवे वाला कैप्टन सौरभ कालिया के बहादुरी के कहानी सदियन ले याद राखल जाई। ऊ 22 दिन तक दुश्मन के कैद में रहले। अपार पीड़ा सहले। अमानवीय क्रूरता सहले। दर्दनाक पहलू ई बा कि परिवार उनका लाश के पहचान तक ना पवले। चेहरा पर ना आँख रहे ना कान। सौरभ के देह पर लागल घाव चिल्ला- चिल्ला के दुश्मनन के अत्याचार के कहानी सुनावत रहे। आज भी परिवार ओह पल के याद करत सिहर जाला।
सौरभ के जनम 29 जून 1976 के अमृतसर में डॉ. एन के वालिया के घरे भइल रहे। बचपन से ही उनकर सपना रहे कि ऊ सेना में भर्ती होखस। जइसहीं होश में आ गइल ऊ तइयारी करे लगलन। 12वीं के बाद एएफएमसी के परीक्षा देले बाकी पास ना हो पवले। एकरा बावजूद ऊ निराश ना भइले। 1997 में ग्रेजुएशन करत घरी ऊ संयुक्त रक्षा सेवा परीक्षा में बइठल रहले आ पास कइले रहले।
पहिला पोस्टिंग कारगिल में भइल रहे।
दिसंबर 1998 में आईएमए से ट्रेनिंग के बाद उनकर पहिला पोस्टिंग फरवरी 1999 में कारगिल के 4 जाट रेजिमेंट में भइल रहे। अभी उनका नौकरी के चार महीना ही भइल रहे कि दुश्मन से आमने-सामने हो गइल। सेना के अधिकारी के ताशी नाम के एगो चरवाहा के ओर से सूचना दिहल गइल कि ऊ कारगिल के चोटी पs कुछ हथियारबंद लोग के देखले बाड़े।
जानकारी मिलते कैप्टन कालिया अपना पांच साथी के संगे 14 आ 15 मई के गश्त पs निकल गइले। बजरंग पीक पर उनकर सामना हथियारबंद पाकिस्तानी सैनिकन से भइल। आमने-सामने के गोलीबारी में कालिया आ उनका साथी के गोली खतम हो गइल। मदद के पहुंचे से पहिले दुश्मन सब पकड़ लेलख। एकरा बाद अमानवीय अत्याचार के अंतहीन सिलसिला शुरू हो गइल, जवन केहु सुने ला तs सिहर जाला।
अमानवीय यातना दिहल जात रहे
दुश्मन कैप्टन सौरभ के तोड़े के मकसद से
अत्याचार कइले। उनकर आँखि निकालल गइल। कान कट गइल। अलग-अलग तरीका से यातना दिहल जात रहे। जब दुश्मन एह योद्धा लोग के हिम्मत ना तोड़ पवले तs कैप्टन कालिया, अर्जुन राम, भीका राम, भंवर लाल बगरिया, मुला राम, नरेश सिंह समेत पांच जवान के हत्या कs देलख।
9 जून 1999 के जब पाकिस्तान कैप्टन सौरभ कालिया आ उनका साथी के लाश भारत वापस क देलस तs पूरा देश भड़क गइल। कैप्टन सौरभ कालिया आ उनकर साथी लोग पर जवन बर्बरता भइल ऊ साफे युद्ध के नियम के उल्लंघन करत रहे। पाकिस्तान के एह कुकर्म काम के अंतर्राष्ट्रीय स्तर पs भी निंदा कइल गइल। इहे भारतीय सैनिकन के लाश पs लागल घाव रहे जवन दुनिया के चौंका देले रहे।
कैप्टन कालिया के छोट भाई वैभव कालिया के कहनाम बा कि ओह घरी शायदे कवनो बात चित भइल रहे, उनका ज्वाइनिंग के मुश्किल से तीन महीना बीत गइल रहे। हम उनका के वर्दी में भी ना देखले रहनी। तब फोन ना रहे, एकमात्र साधन रहे चिट्ठी, उहो एक महीना में पहुंचत रहे। हमनी के एगो अखबार से जानकारी मिलल कि सौरभ पाकिस्तानी सेना के हिरासत में बा। बाकी हमनी के कुछ ना समझ पवनी सs, एहसे हमनी के स्थानीय सेना छावनी से पूछताछ कइनी सs।
मई 1999 के दुपहरिया में जब सौरभ के महतारी विजया कालिया के बेटा के लाश मिलला के खबर मिलल तs उनका झटका बरदाश्त ना भइल। जब कैप्टन कालिया के लाश उनका घरे पहुंचल तs सबसे पहिले भाई वैभव के देखाई देलस। उनकर कहनाम बा कि ओ समय हमनी के उनका लाश के पहचान तक ना कs पवनी। चेहरा पर कुछुओ ना बचल रहे। ना आँख ना कान। खाली भौंह रह गइल रहे। उनकर भौंह हमरा भौंह से मिलत जुलत रहे, एही से हमनी के उनकर लाश के पहचान कर पवनी सs।
सौरभ आखिरी बेर अप्रैल में अपना भाई के जन्मदिन पर फोन कइले रहले ।
आ जब सौरभ के आखिरी चिट्ठी 24 मई के घरे चहुँपल तs ऊ पाकिस्तानियन का नियंत्रण में रहले । ऊ खाली चेक पर हस्ताक्षर कs के माई के भेजले रहन , ई कहत कि ऊ हमरा तनखाह से जेतना मन करे ओतना पइसा निकाल सकेली, शहादत के बाद सौरभ के पहिला तनखाह उनका खाता में आइल।
21 साल के शहादत के बाद भी शायदे कवनो दिन बीतत होई जवना में उनकर याद ना रहे। वैभव के कहनाम बा कि आज भी ऊ हमनी के बीच में बाड़े, हमनी के उनकर मौजूदगी महसूस होखता। माई अक्सर उनकर बचपन के कहानी सुनावेली । लोग उनका आ उनकर पूरा परिवार के सौरभ कालिया के नाम से जानेला।
वैभव बतावेला कि जब भी मुसीबत में पड़ेला तs हमरा भाई के याद आवेला। आ हमरा लागत बा कि, हमनी के परेशानी ओह लोग के साथे जवन भइल, ओह लोग के सामना करे वाला कठिनाई के तुलना में कुछुओ नइखे ।
सौरभ के बचपन से सेना में भर्ती होखे के चाहत रहे। बारहवीं के बाद एएफएमसी के परीक्षा देले, बाकी पास ना हो पवले। ग्रेजुएशन के बाद ऊ सीडीएस परीक्षा में हाजिर भइले आ उनकर चयन भइल। हमनी के सब केहू बहुत खुश रहनी सs, माई-बाबूजी के भी गर्व रहे कि उनकर बेटा सेना में भर्ती हो गइल बा।
चयन के बाद दस्तावेज के चलते उनका ज्वाइनिंग में दु-तीन महीना के देरी हो गइल। उनका अगिला बैच में ट्रेनिंग खातिर जाए के मौका मिलल रहे, बाकी देरी के बाद भी ऊ ओही बैच में जाए के फैसला कइले। प्रशिक्षण में अंतर के दूर करे खातिर ऊ बहुत मेहनत कइले आ दिसंबर 1998 में आईएमए से पास आउट हो गइले।
ओह लोग के कहना बा कि ओह घरी जदी सौरभ ज्वाइन करे के बजाय अगिला बैच में ज्वाइन कर लेत तs जून-जुलाई में पास आउट भइल रहते । तब शायद बात अलग रहित।
एह 25 साल में सौरभ के परिवार उनका के न्याय दिलावे खातीर बहुत संघर्ष कइले बा। हमरा मानवाधिकार आयोग, भारत सरकार आ सेना के कई गो दौर से गुजरे के पड़ल। उनकर परिवार चाहत बा कि पाकिस्तान के ओर से सौरभ आ उनका संगे गश्त पs गइल जवान के प्रति जवन क्रूरता भइल बा ओकरा पs पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई कइल जाए।
मामिला के इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में ले जाए के चाही। बाकी, एकरा खाती सरकार के पहल करे के होई। फिलहाल मामला सुप्रीम कोर्ट में बा। उनका पिता के लगे सौरभ खातिर देश भर में कइल गइल अपील से जुड़ल फाइल बा। ऊ कहत बाड़न कि जबले जिन्दा रहीं तबले न्याय खातिर कोशिश करत रहब ।
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