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जयंती: पुरबिया उस्ताद महेंदर मिसिर जयंती विशेष आलेख

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महेन्दर मिसिर के बारे में अतना किंवदंती, अतना कल्पना आ अतना विवाद प्रचलित बा कि लगबे ना करेला कि ऊ कवनो हाड़ मांस के साधारण अदिमी रहले आ 1946 ले एही धरती पs मौजूद रहले। असल में एकर कारण ओही मानसिकता में बा जवना कारण से करोड़न आदिवासियन के कानून में अधिकार ना दीहल गइल रहे। एह मानसिकता के सोर उहां बा जवना के कारण अंग्रेज़ी बोलें वाला लोग जादे महान होखेला, हिन्दी बोले वाला तनी कम बाकिर उहो बड़कवा मानल जाले बाकिर भोजपुरी बोले वाला लोग कब्बो अतना महत्वपूर्ण ना होखेले कि उनका के गंभीरता से लीहल जाव। अगर अइसन नइखे तs का कारण बा कि देश खातिर डाका डाले वाला, जान लेबे वाला इहाँ ले कि अंग्रेज़ महिला बच्चा के कमरा में बंद कऽ के मार देबे वाला (कलकत्ता के ब्लैक होल घटना) तक के देशभक्ति पर प्रश्नचिन्ह ना खाड़ कइल जाला बाकिर नोट के छापाखाना बइठा के अंग्रेजन के आर्थिक व्यवस्था के ध्वस्त करे वाला, क्रांतिकारियन के खुला हाल आ खुला दिल से मदद करेवाला आ जेल में 7 साल काटेवाला महेन्दर मिसिर के देशभक्त वाला ऊ सम्मान ना मिलेला जवना के ऊ हक़दार रहन।

 

हमरा निको ना लागे गोरन के करनी

रुपया ले गइले, पइसा ले गइले

अउरी ले गइले सब गिन्नी

बदला में देके गइले ढल्ली के दुअन्नी

हमरा नीको ना लागे गोरन के करनी।

 

जइसन गीत लिखे वाला महेन्दर मिसिर हमेशा एगो विवादित व्यक्तित्व मानल गइले। देश के आजादी के भावना उनुका मन में बहुत पहिले आ गइल रहे जब कलकता के विक्टोरिया मैदान में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के ऊ भाषण सुनले रहले। एगो अंग्रेज से नोट छापे के मशीन जोगाड़ के ऊ सरकार के कमजोर आ स्वतंत्रता सेनानी सब के मजबूत करे में लाग गइले। ई कइसन उलटबांसी बा कि जेकरा के पकड़े खातिर अंग्रेज सीआईडी लगा दीहले संड, जेकरा खातिर ओकर एगो अधिकारी कुछ दिन भा कुछ महिना ना पूरा तीन साल तक नोकर बने खातिर मजबूर हो गइल आ अंग्रेज सरकार एह काम के अतना महत्वपूर्ण मनलस कि अपना ओह अधिकारी के वापस ना बोला के लगातार पाछे लगवले रखलस ऊ आदिमी देशभक्त आ राष्ट्रवादी ना कहाइल। जवन जटाधारी भा गोपीचंद तीन साल उनका साथे रह के गीत बनावे सिखलस आ कहलस कि-

नोटवा जे छापि छपि गिनिया भजवलs ए महेन्दर मिसिर ब्रिटिस के कईलs हलकान ए महेन्दर मिसिर

सगरे जहानवा मे कईले बाडs नाम ए महेन्दर मिसिर

परल वा पुलिसवा से काम हो महेन्दर मिसिर

उहो एह रचनाकार के स्वतंत्रता सेनानी माने खातिर पर्याप्त ना भइल। ई बात कई रूप में प्रमाणित हो चुकल बा कि महेंद्र मिसिर के घर स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियन खातिर गुप्त अड्डा के रूप में काम आवत रहे। ओह घरी के बहुत सारा स्वतंत्रता सेनानी आ उनुका समय के बाचल बुजुर्ग लोग बार बार बतावल कि मिसिर जी के बैठकी में संगीत, नृत्य आ गीत गवनई के अलावा राजनीतिक चर्चा खूब होत रहे, इहे ना आजादी खातिर संघर्ष करेवाला लड़ाका लोग के मिसिर जी लगातार आर्थिक मदद करत रहना तब्बो इनकर पहचान गवैया आ तवायफ खातिर लिखवैया के बनल।

सबसे मजेदार बात तऽ ई बा कि भोजपुरिया समाज के लोगन के एह बात से कवनो फर्क ना पड़े कि देश आ समाज खातिर समर्पित एगो महान रचनाकार के नारी के रसिया, तवायफ प्रेमी, गुंडा, फर्जी, चार सौ बीस टाइप के छवि बना दीहल गइला कवनो दूसर समाज के कवि के साथे अइसन भइल रहित तऽ ओह भाषा के प्रेमी सब अइसन बात लिखेवाला लोगन के कपार फोड़ देतन संऽ आ सम्मान खातिर बड़का आंदोलन चलवते संा बाकिर का करऽब लाठी के जोर वाला ई भोजपुरिया समाज हऽ जवन कवनो मंत्री के एक लाइन भोजपुरी बोलला पड मस्त हो जाला आ अपना नायकन के सवाल पऽ पस्त हो जाला।

महेंदर मिसिर सतजुग भा त्रेता के ना एही समय के व्यक्ति रहले। कुल मिला के 60 साल के जिनगी मिलल बाकिर काम अइसन कि कवनो समाज उनुका पर गर्व कर सकेला| महेन्दर मिसिर प भोजपुरी में तीन गो आ हिंदी में एगो उपन्यास लिखाइल। पांडेय कपिल एगो उपन्यास ‘फुलसुंघी’ (1977) लिखलें जवन खूब चर्चित भइल। रामनाथ पांडेय जी के उपन्यास ‘महेन्दर मिसिर’ (1994) आ जौहर साफियाबादी जी के उपन्यास ‘पूर्वी के धाह’ (2010) आ हिंदी के चर्चित लेखिका अनामिका के ‘दस द्वारे का पींजरा’ (2008) उपन्यास महेंदर मिसिर के जिनगी प आधारित बा। प्रसिद्ध नाटककार रवीन्द्र भारती ‘कंपनी उस्ताद’ नांव से नाटक लिखले बाड़न जेकरा के चर्चित रंगकर्मी संजय उपाध्याय खूब मंचित कइले बाड़ना जगन्नाथ मिश्र जी के लिखल ‘पुरबी के पुरोधा’, तीर्थराज शर्मा जी के उपन्यास ‘गीत जो गा न सका’ आ साहित्य अकादमी खातिर भगवती प्रसाद द्विवेदी जी के लिखल मोनोग्राफ ‘महेन्द्र मिसिर’ से महेन्दर मिसिर जी के बारे में जानकारी मिलेला।

 

 

 

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