हर महीना के कृष्ण पक्ष के चतुर्थी के संकष्टि चतुर्थी आ पौष महीना में आवे वाला चतुर्थी तिथि के अखुरथ संकष्टि चतुर्थी कहल जाला। एs दिन भगवान गणेश के समर्पित होला आ एह दिन गणपति के पूजा विधि—विधान से कइल जाला। पंचांग के अनुसार आजु यानी 18 दिसम्बर के अखुरथ संकष्टी चतुर्थी व्रत मनावल जा रहल बा। हिन्दू धर्म में संकष्टी चतुर्थी के व्रत के बहुत महत्व मानल जाला। एह व्रत के पालन कइला से ओह आदमी के सगरी परेशानी दूर हो जाला आ ओकरा जिनिगी में सफलता मिलेला आज के दिन पूजा के बाद व्रत कहानी जरूर पढ़े के चाही।
अखुरथ चतुर्थी व्रत कथा
पौराणिक कथा के मुताबिक एक बेर रावण स्वर्ग के सभ देवता के जीत लेले रहे अवुरी उs पीछे से बाली के पकड़ लेले रहे। बानर राजा बाली रावण से कहीं जादा ताकतवर रहले उs रावण के बगल में दबा के किश्किन्धा ले आके अपना बेटा अंगद के खिलौना निहन खेले खातीर देले के दे देलस। अंगद भी रावण के खिलौना मान के रस्सी से बान्ह के इधर-उधर घुमावे लगले। जवना के चलते रावण के बहुत कष्ट होखत रहे।
एक दिन रावण उदास मन से अपना पिता ऋषि पुलस्त्य जी के याद कईले। रावण के अईसन हालत देख के पुलस्त्य ऋषि बहुत दुखी भईले अवुरी उनुका पता चलल कि रावण के अयीसन हालत काहें बा। मन में सोचले कि देवता, मनुष्य आ राक्षस के जब घमंड होखेला तs इहे होला। तबो प्यार से उs रावण से पूछले कि तू हमरा के काहे याद कईले बाड़? रावण कहलस पितामह हम बहुत दुखी बानी, इहां के नगरवासी हमरा के धिक्कारते बा, कृपया हमार रक्षा करीं आ हमरा के एह दुख से बाहर निकाल दीं।
पुलस्त्य ऋषि कहलन कि चिंता मत करीं, जल्दिए एह बंधन से मुक्ति मिल जाई। उs रावण के भगवान गणेश के व्रत करे के सलाह देले अवुरी बतवले कि प्राचीन काल में वृत्रासुर के हत्या से मुक्ति पावे खातीर इंद्रदेव भी इहे व्रत कईले रहले। ई व्रत बहुत फलदायी होला आ एकरा के पालन कइला से सब परेशानी दूर हो जाला। पिता के सलाह पs रावण संकष्टि चतुर्थी के व्रत रख के बाली के बंधन से मुक्त होके अपना राज्य में चल गईले।
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