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राम नवमी विशेष आरती : आरती कीजै रामचन्द्र जी की

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एगो धार्मिक मान्यता बा कि भगवान श्री राम के पूजा कइला से साधक के हर तरह के परेशानी से मुक्ति मिलेला। भगवान श्री राम के समर्पण के कारन वानर राजा सुग्रीव के गद्दी मिलल। एही समय विभीषण के भी लंका के राजा बने के गौरव मिलल। जबकि भगवान श्री राम के महान भक्त हनुमान जी के अमरत्व के वरदान मिलल। अगर रउआ भी भगवान श्री राम के आशीर्वाद चाहत बानी तs मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के उचित तरीका से पूजा करीं। साथ ही पूजा के अंत में ई आरती (रामजी आरती) करीं।

1.श्री राम आरती : Ramnavmi Special Aarti 2024

आरती कीजै रामचन्द्र जी की।

हरि हरि दुष्टदलन सीतापति जी की ॥

 

पहली आरती पुष्पन की माला।

काली नाग नाथ लाए गोपाला ॥

 

दूसरी आरती देवकी नन्दन।

भक्त उबारन कंस निकन्दन ॥

 

तीसरी आरती त्रिभुवन मोहे।

रत्न सिंहासन सीता रामजी सोहे ॥

 

चौथी आरती चहुं युग पूजा।

देव निरंजन स्वामी और न दूजा ॥

 

पांचवीं आरती राम को भावे।

रामजी का यश नामदेव जी गावें ॥

2. आरती (Ram Ji Ki Aarti)

आरती कीजै श्री रघुवर जी की,

 

सत् चित् आनन्द शिव सुन्दर की।

 

दशरथ तनय कौशल्या नन्दन,

 

सुर मुनि रक्षक दैत्य निकन्दन।

 

अनुगत भक्त भक्त उर चन्दन,

 

मर्यादा पुरुषोतम वर की।

 

आरती कीजै श्री रघुवर जी की…

 

निर्गुण सगुण अनूप रूप निधि,

 

सकल लोक वन्दित विभिन्न विधि।

 

हरण शोक-भय दायक नव निधि,

 

माया रहित दिव्य नर वर की।

 

आरती कीजै श्री रघुवर जी की…

 

जानकी पति सुर अधिपति जगपति,

 

अखिल लोक पालक त्रिलोक गति।

 

विश्व वन्द्य अवन्ह अमित गति,

 

एक मात्र गति सचराचर की।

 

आरती कीजै श्री रघुवर जी की…

 

शरणागत वत्सल व्रतधारी,

 

भक्त कल्प तरुवर असुरारी।

 

नाम लेत जग पावनकारी,

 

वानर सखा दीन दुख हर की।

 

आरती कीजै श्री रघुवर जी की…

3. आरती (Ram Ji Ki Aarti)

श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन,

 

हरण भवभय दारुणम्।

 

नव कंज लोचन, कंज मुख

 

कर कंज पद कंजारुणम्॥

 

श्री रामचन्द्र कृपालु…

 

कन्दर्प अगणित अमित छवि,

 

नव नील नीरद सुन्दरम्।

 

पट पीत मानहुं तड़ित रूचि-शुचि

 

नौमि जनक सुतावरम्॥

 

श्री रामचन्द्र कृपालु…

 

भजु दीनबंधु दिनेश दानव

 

दैत्य वंश निकन्दनम्।

 

रघुनन्द आनन्द कन्द कौशल

 

चन्द्र दशरथ नन्द्नम्॥

 

श्री रामचन्द्र कृपालु…

 

सिर मुकुट कुंडल तिलक चारू

 

उदारु अंग विभूषणम्।

 

आजानुभुज शर चाप-धर,

 

संग्राम जित खरदूषणम्॥

 

श्री रामचन्द्र कृपालु…

 

इति वदति तुलसीदास,

 

शंकर शेष मुनि मन रंजनम्।

 

मम ह्रदय कंज निवास कुरु,

 

कामादि खल दल गंजनम्॥

 

श्री रामचन्द्र कृपालु…

 

मन जाहि राचेऊ मिलहि सो वर

 

सहज सुन्दर सांवरो।

 

करुणा निधान सुजान शील

 

सनेह जानत रावरो॥

 

श्री रामचन्द्र कृपालु…

 

 

 

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