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अतवारी छौंक: बात कुछ पुरनका दौर के! पहिला स्टार संगीतकार “नौशाद”

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खबर भोजपुरी रउरा लोग के सोझा एगो नया सेगमेंट लेके आइल बा , जवना में रउरा के पढ़े के मिली फिलिम इंडस्ट्री से जुड़ल रोचक कहानी आ खिसा जवन बितsल जमाना के रही।

आजू पढ़ी हारमोनियम में सुधार करत ब्रॉड-वे सिनेमा के सामने बइठल आपन फिलिम के ओही थियेटर में रिलीज होखे के सपना तक पुरा होखत देखे वाला पहिला स्टार संगीतकार “नौशाद” के बारे में।

ई बहुत पुरान बात हs l गर्मी के दिन उत्तर प्रदेश के एगो छोट गाँव में बियाह के जुलूस निकलत रहे। दूल्हा एगो घोड़ी के सवारी करत रहे। बैंडबाजा पs एगो गाना बाजत रहे- “अखियां मिलाके जिया भरमा के चले नहीं जाना।” गीत के दौरान लोग झूम-झूम के कलाकारन के लोग पइसा लुटावात रहे। दूल्हा अपना सेहरा के भीतर मंद मुस्कान देत रहले। बेचारा बैंडबाजा वालन के मालूम ना रहे कि जवना गीत पs ऊ लोग बख्शीश पs बख्शीश लेत बा ओकर सृजनकर्ता एहिजा घोड़ी पs सवार बा। बैंड के सदस्यन के छोड़ दीं तs खुद रिश्तेदारन के भी पता ना रहे कि दूल्हा नौशाद फिल्मी दुनिया के टॉप म्यूजिशियन हउवें। दूल्हा खुद कइसे बताई? ओह घरी फिलिमन में संगीत देबे वालन के सामाजिक हैसियत बैंड के संगीतकारन से एको बित्ता भर ऊपर ना रहे आ सूफी परिवार के होखला के चलते दुलहिन के पिता नौशाद के बियाह से पहिले चेतवले रहले कि ऊ केहू से ना बतावे कि ऊ फिल्मन में संगीत करत बाड़े आ बैंडबाजा बजावत बाड़े।

नौशाद साहेब के बारे में हमनी के बहुत कुछ जानतानी। जइसे कि उनकर गरीब दिन के कहानी, हारमोनियम में सुधार करत ब्रॉड-वे सिनेमा के सामने बइठल आपन फिलिम के ओही थियेटर में रिलीज होखे के सपना, ऊ सपना साकार होखल, ‘ बैजू बावरा’ के संगीत तैयार करत आपन नींद गवावल आ महबूब साहेब के हस्तक्षेप पs व्यंग्य खातिर उन्ही के दिशा में हस्तक्षेप कइल बाकिर कुछ अइसन मुद्दा बा जवना पs आम तौर पs चर्चा ना भइल। नौशाद आपन समकालीन आ उत्तरवर्ती संगीतकारन के मुकाबले बहुते साधारण इंसान रहले। शंकर-जयकिशन, सी. रामचंद्र, आर. सी. बोराल, मदन मोहन से लेके बाद के पीढ़ी के लक्ष्मीकांत आ राहुल देव बर्मन ले, कई गो संगीतकारन जान बोतल में गँवा दिहल। बाकिर नौशाद साहेब हमेशा एह मुसीबत से दूर रहलन। नकली चमक आ शराब-शबाब- कबाब से लबरेज एह फिल्मी दुनिया में नौशाद साहेब, कल्याणजी-आनंदजी आ अब नया पीढ़ी ए. आर. रहमान एह बोतलीय दुनिया के अपवाद स्टार हउवें।

 

नौशाद साहेब में स्वाभिमान कूट-कूट के भरल रहले। जब ऊ मेहनत करत रहले तs मेहनताना के भी मांग करत रहले आ अपना काम खातिर उचित मान्यता मिले के उमेद भी बनवले रखले रहले। ‘मुगल-ए-आजम’ बॉक्स ऑफिस पs ई ऐतिहासिक सफलता रहल आ एकर संगीत के भी समीक्षक लोग सराहल। एकर बैकग्राउंड म्यूजिक भी बहुत पसंद आइल। ‘मुगल-ए-आजम’ भारतीय फिल्म संगीत के इतिहास में अकेला फिलिम हs, जवना खातिर ओकर बैकग्राउंड म्यूजिक के अलगा लंबा प्ले रिकार्ड जारी भइल रहे। एह सब तारीफ के बावजूद जब ओह साल शंकर-जयकिशन के फिल्मफेयर अवार्ड दिहल गइल रहे दिल अपना और प्रीत पराई’ खातिर। ऊ सीधे बैनेट कोलमैन एंड कंपनी के चेयरमेन के लगे गइलन आ कहलन कि आजु रउरा क्वालिटी के मुक़ाबला से जेके पॉपुलरिटी के तरजीह देत बानी, भविष्य में भारतीय फिल्म संगीत के पतन के ओर ले जाला। ” ठीक इहे भईल। पुरस्कार में लोकप्रियता के महत्व मिले लागल आ हर संगीतकार लोकप्रियता के पराकाष्ठा पs चहुँपे खातिर होड़ लगावे लागल। एमें कवनो शक नाहीं कि ‘दिल अपना और प्रीत पराई” (अजीब दास्तां है ये / जाने कहां गई / शीशा ए दिल इतना ना उछालो / अंदाज़ मेरा मस्ताना / शीर्षक-गीत) के संगीत अप्रतिम आ मेलोडी के दृष्टि से ‘मुगल-ए- आजम’ (मोहे पनघट पे नंदलाल छेड़ गयो रे / तेरी महफिल में किस्मत आजमा कर हम भी देखेंगे / प्यार किया तो डरना क्या / बेकस पे करम कीजिए) के मुकाबले इक्कीस रहे, लेकिन तमाम मधुरता के बावजूद यह एक किस्म के एफर्टलेस संगीत रहे, जबकि ‘मुगल-ए-आजम’ नौशाद साहब के तपस्या रहे, पुरस्कार के दौड़ में इबादत पीछे रह गईल, दुआ-सलाम आगे बढ़ गईल।

लोकप्रियता के ई नतीजा भइल कि संगीत में गुणवत्ता आ गंभीर प्रयोग धीरे-धीरे खराब होखे लागल, खुद फिल्मफेयर अवार्ड के साख कम होखे लागल;स्थिति एतना पहुँच गइल कि 1972 में ‘पाकीजा’, ‘अनुराग’ आ ‘ ‘परिचय’ के सुरीला संगीत के तुलना में ओह साल के पुरस्कार ‘बेईमान’ के संगीत के दिहल गइल।

आजु जब इंडियन आइडल शो में अपना मनपसंद गायक के सत्ता से बेदखल कइला पर लोग के रोवत देखेनी जा तs फेर नौशाद साहब जइसन संगीतकारन के मेहनत के सलामी देबे के मन करेला जवना के चलते फिल्म संगीत के दर्जा राख से प्लेटफार्म तक पहुँच गइल बा

 

 

 

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