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बाबूजी-2 (कविता) मैकश के कलम से

मैकश के कविता जिनगी के मय पहलुअन के शब्दन में समेटले रहेला....

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घर के जानल पहचानल अनजान बाबूजी

हो गइले जइसे कवनों गाछ पुरान बाबूजी

घर आंगन दुआर के लाठी रखवार बाबूजी

आन्ही रोकत जइसे माटी के देवार बाबूजी

सर्दी के ठंडी गर्मी के जइसे उमस बाबूजी

लउटेले जइसे लउटे खलिया बस बाबूजी

थाक जाले जइसे सरेह के थाकल बाबूजी

एक भोरे के जइसे खेत के हाकल बाबूजी

मीठ से हो गइले तिता खारा जल बाबूजी

तपिस में सुखल जइसे चापाकल बाबूजी

गइले चिंता में निमक नियन गल बाबूजी

जइसे बोखार में गलल देह के बल बाबूजी

अपने घर में अपने लोग के आह बाबूजी

घर में बचल जइसे कोना-कोनाह बाबूजी

अइसे अकेला ! पइसा में हिसदार बाबूजी

चार किता घर के बेघर किरायदार बाबूजी

मैकश के परिचय

 

गांव के माटी-पानी में सनाइल एगो नब्बे के दशक के भारतीय जवना के आपन भाषा आ संस्कृति में अटूट विश्वास आ लगाव बा। ‘मैक़श’ के परिचय इंहा एगो अइसन साधारण आ जमीन से जुड़ल नवसिखुआ लइका से बा जवना के कलम आ शब्द नवहन के बात करेला। उ संवेदना, भाव आ अंदाज के लिखे के एगो छोटहन कोसिस जवना के समाज आ लोग साधारणतः नजरअंदाज क देला।

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