भोजपुरी समीक्षा
भोजपुरी भाषा के पहिलका उपन्यास,बिंदिया
समीक्षक-विजय कुमार तिवारी
हमरा समीक्षा के भूमिका
सबसे पहिले इ स्वीकार करे में कवनो संकोच नइखे कि भोजपुरी जइसन समृद्ध भाषा में साहित्य अभी ओतना नइखे लिखाइल, जेतना लिखा जाये के चाहत रहे। एकर माने इहो ना समुझल जाव कि अब तकले कुछ भइले नइखे। बहुत भइल बा, आ अब त जोर-शोर से लागल बा लोग। खूब लिखाता, आ छापाता। हमार भाव इहे बा कि औरु होखे के चाहत रहे। अभी थोड़हीं दिन पहिले श्री भगवती प्रसाद द्विवेदी जी एगो लेख भेजले रहनी “भोजपुरी उपन्यास के इतिहास-पुरुष रामनाथ पाण्डेय”। इहो संजोगे नु कहाई कि सितम्बर महीना में हमरा आरा-प्रवास में इतिहास-पुरुष रामनाथ पाण्डेय जी के सुपुत्र श्री विमलेन्दु भूषण पाण्डेय जी का हमरा से प्रेम जागल,आ उहाँ का आपना अखबार ‘ग्राम टूडे’ के संपादक श्री गनपति सिंह जी के साथे छपरा से अटट दुपहरिया में हांकासल-पियासल पहुँचि गइनी। हमार बड़का सौभाग्य रहे कि भोजपुरी के एतना बड़का रचनाकार-उपन्यासकार के दुगो उपन्यास-महेन्दर मिसिर आ बिंदिया, श्रद्धापूर्वक भेंट कइल लो। निश्चित रुप से ईश्वर के इ कवनो व्यवस्था रहे, ना त केहू अतना दूर से एगो अदना आदमी से मिले आ उपन्यास भेंट करे आई? हमरा बुझा गइल कि भगवान चाहतारे कि हमहूँ भोजपुरी भाषा में आपन सेवा-सहयोग करीं। एह संकेत पर मन गदगदा गइल, आ मन ही मन तय कर लिहनी कि ई काम जरूर होई।
एह क्रम में आपन एगो संस्मरण सुनावल चाहतानी। पटना में हमार तबादला धनबाद से 1982 में भइल। ओह घरी नाया-नाया लेखन के जोश रहे,बाकिर ना कवनो अखबार से परिचय रहे, ना कवनो पत्रिका से। संयोग से कहीं से पैदले लौटत रहनी, त पटना आकाशवाणी के गेट खुलल दिखाई दिहल। उत्सुकता बस भीतर गइनी। कुछु बुझात ना रहे कि केने जाई। एगो भद्र आदमी कहीं से निकलले। हमरा के तनी ध्यान से देखत,पूछले,”कुछ लिखते हैं क्या? आइये।” हम उनका पीछे-पीछे एगो कमरा में पहुँचि गइनी। बइठे के कहलन आ पूछले कि भोजपुरी में कविता,कहानी,लेख लिखत होईं त हमरा के आपन रचना दे देबि। रचना अच्छा होई त रवुँआ के बोलावल जाई। उहाँ के नाम रहे, श्री राम जी यादव। ओकरा बाद हमार रचना,कहानी,कविता आ लेख प्रसारित होखे लागल। पटना में रहला के एगो लाभ इहो भइल कि जब दूर-दराज से कवनो साहित्यकार समय पर ना पहुँचि पावत रहे लोग, त हमार बुलाहट हो जात रहे। ओह घरी सीधे प्रसारण होत रहे। हमरा गाँव में घंटा भर पहिलहीं से घर-गाँव के लोग दुआर पर ट्राञ्जिस्टर खोल के बइठ जात रहे । हमनी का श्री जब्बार साहब के संपादन में भोजपुरी पत्रिका कलँगी निकालत रहनी जा। हमरो दू-तीन गो कहानी छपल रहे। कवनो विदेशी कविता के भोजपुरी में अनुवाद कइले रहनी। हिन्दुस्तान अखबार में हमार भोजपुरी कहानी छपल रहे।
अइसे त इ मानल जाला कि भोजपुरी भाषा सांतवी सदी में आपन रुप-स्वरुप धारण कइ लेले रहे, आ लोग लिखे-पढ़े लागल रहे। धीरे-धीरे जन मानस में भोजपुरी के मिठास रचत-बसत गइल, आ आजु दुनिया के अनेक देशन में खूब आदर-सम्मान के साथे बोलल, समझल जाता। आजु भोजपुरी भाषा के साहित्य समृद्ध होत जा रहल बा,आ निश्चित रुप से कहल जा सकता कि एह भाषा के भविष्य उज्वल बा।
विस्तृत समीक्षा
सारण जिला के नवतन गाँव के रहे वाला रामनाथ पाण्डेय जी के जनम भइल रहे 8 जून 1924 के, आ आपन 82 बरिस के आयु पूरा कइके उहाँ का 16 जून 2006 में एह दुनिया से बिदा ले लिहनी। शुरुवे से उहाँ के लेखन में रुचि रहे। भगवती प्रसाद द्विवेदी जी लिखले बानी-“पाण्डेय जी के लेखन के सिरीगनेस हिन्दी में भइल रहे आ उहांके ‘वह वेश्या थी’,’फूल झड़ गया:भौंरा रो पड़ा’,’नई जिन्दगी:नया जमाना’,’मचलती जवानी’ वगैरह एक दर्जन उपन्यास लिखनीं.बाकिर महापंडित राहुल सांकृत्यायन के नेक सलाह पर एकाएक उहांके आंतर मातृभाषा के सेवा खातिर तड़पि उठल रहे आ ओही घरी से ठानि लेले रहनीं कि उहांके अब भोजपुरी आ सिरिफ भोजपुरिए के विकास-बढ़न्ती खातिर तन-मन-धन से लवसान रहबि.”
उपन्यास के पहिलका संस्करण 1956 में छपल, आ ओह घरी पाण्डेय जी मात्र 32 बरिस के रहनी। आपना एह उपन्यास ‘बिंदिया’ के उहाँ का महापंडित आ बहु भाषाविद् राहुल सांकृत्यायन जी के आदर के साथ समर्पित कइले बानी। मसूरी से 22 फरवरी 1957 के राहुल सांकृत्यायन जी रामनाथ जी के चिट्ठी लिखनी-
प्रिय रामनाथ जी.
आपकी ‘बिंदिया’ मिली। भोजपुरी में उपन्यास लिखकर आपने बहुत उपयोगी काम किया है। भाषा की शुद्धता का आपने जितना ख्याल रखा है,वह भी स्तुत्य है। लघु उपन्यास होने से यद्यपि पाठक पुस्तक समाप्त करते समय अतृप्त ही रह जायेगा,पर उसके स्वाद की दाद तो हर एक पाठक देगा। आपकी लेखनी की उत्तरोत्तर सफलता चाहता हूँ।
राजेन्द्र कालेज,छ्परा के प्रिंसिपल श्री मनोरंजन जी के वक्तव्य उद्धृत ना कइल जाव,त अन्याय होई। उहाँ का कम शब्दन में सटीक बात कहले बानी,”पांडेजी के भासा बड़ा सुन्दर बा,जीअत-जागत,चमकत-झमकत, फुदकत-नाचत। गाँव के खेतन के अउरी पवधन के बड़ा सुन्दर बरनन बा। कथानक अउरी चरित्र चित्रणी सुन्दर भइल बा। उनका कलम के तेज से पात्र सजीव हो उठल ह। कोदई,बुधराम,झमना,मंगरा,भगत,पुरोहित,पूजेरी अउरी बिंदिया सभे जीअत-जागत बा। कहीं ढेर बढ़-चढ़ के नइखे लिखल गइल। सामने किसान जीवन के चित्र आ जाता। बिंदिया त बिंदिए ह। कोदई अउरी बुधरामो के बहुत आछा तसवीर आइल ह।”
हमरा मन के बात, पाण्डेय जी “आपन बात” में खुदे लिखले बानी,”भोजपुरी के बढ़न्ती के जवन आस हमरा रहे ऊ पूरा ना भइल। बीया धरती से उपर उठल, अँकुराइल,मोलायम-मोलायम मखमल नीयर पत्ता निकसल,बाकिर अबले पवधा के जड़ मोटाइल ह ना,सोर पाताले ना ठेकल ह। अबले भोजपुरी के पेड़ के छाँह भोजपुरी जवानन के हरला-थकला के बाद सुसताये लायक ना बन पवलस। थकान मेटावे लायक ना भइल।”
इहे बात हमरो मन में उभकत-चुभकत रहेला। हमहीं ना,बहुते भोजपुरी के प्रबुद्ध जन लोग बा,जे एह दिशा में चिन्तन-मनन करत बा। आजु लोग सजग भइल बा,त एक ना एक दिन सुखद परिणाम मिलबे करी। केकरा के दोष दिहल जाव? ऊ एगो दौर रहे, बहुत कुछ अनर्गल, हमनी का साहित्य में, कवनो साजिश के तौर पर घुसावल गइल। हिन्दी सिनेमा में जवन गड़बड़ी कइल गइल,उहे गड़बड़ी भोजपुरियो सिनेमा आ साहित्य में भइल बा। हमनी के कलाकार लो समझिये ना पावल,तबले खेला हो गइल। ओतना फुहड़पन ना होखे के चाहीं,जेतना आजुओ परोसल जा रहल बा।
पाण्डेय जी भोजपुरियन के बड़ा सुन्दर चित्रण कइले बानी,”हाथ में लाठी,मोंछ पर ताव,आँख में करे-मरे के भाव, हिरदया में दुलार के लहरत हिलकोर,आ कंठ में विरह-वेदना के गीत।” उहाँ का आगे लिखले बानी,”अब लागता, भोजपुरी केकरो नजर में हीन ना रही। ओकरा आदर मिली,साहित्य में आपन जगह बनाइये के रही।” उहाँ के इ सपना देखला पैंसठ बरिस हो गइल, हमनी सब का विचार करे के चाहीं कि केतना काम पूरा भइल,आ केतना अभी बाकी बा। पाण्डेय जी एगो अउर बात कहले बानी,”अब केहू ना कहि सकेला कि भोजपुरी में कहानी नइखे,उपन्यास नइखे,नाटक आ लेख नइखे लिखात। लिखात खूबे बा, नीमन-नीमन लिखाता बाकिर छापे के जोगाड़ नइखे लागत। छपतो बा,त ओकर परचार जइसन होखे के चाहीं,नइखे होखत।” इ समस्या त आजुओ बा। एहू पर हमनी का विचार करे के चाहीं।
श्री विमलेन्दु भूषण पाण्डेय,उहाँ के जेठ बेटा, बड़ा आछा बात लिखले बानी,’सब धन से बेसी साहित्यिक धन हमनी के बपौती मिलल। एह बात के मने-मन गुमानो होत रहे,आ भोजपुरी खातिर श्रद्धो बढ़त रहे।” पाण्डेय जी के बड़ पतोहू,मीना पाण्डेय जी उहाँ के बारे में बहुत बड़ बात कहले बानी,”जवन उहाँ का ‘बिंदिया’ में रचले बानी,स्त्री के महत्व के,ओकरा अधिकार के बात कइले बानी,ओपर जोर देले बानी,असलियो जिनगी में उहाँ के ऊहे कइनी।”
भोजपुरी के पहिलका उपन्यास के गौरव से विभूषित ‘बिंदिया’ उपन्यास 13 खण्ड में लिखाइल बा। उपन्यास देखे में,पढ़े में भले छोट,लघु लागता बाकिर कथ्य-कथानक बेजोड़ बा। एहके नारी-विमर्श के उपन्यास कहल जाव, त कवनो गलत ना मानल जाई। ई कम बात नइखे कि कवनो रचना अपना सृजन काल से ही जन-मानस में रचल-बसल बा।
श्री केशव मोहन पाण्डेय जी,समन्वयक,सर्व भाषा ट्र्स्ट,आपना लेख “वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भोजपुरी के पहिलका उपन्यास बिंदिया” में अद्भुत विवेचना कइले बानी। एकरा बाद कहे खातिर कुछो अउर के जरूरत नइखे। बहू मीना जी के प्रसंग में स्वर्गीय रामनाथ पाण्डेय जी के व्यक्तित्व के झलक मिलता। कवनो कोना बाकी नइखे जेने श्री केशव मोहन जी के ध्यान ना गइल होखे। ओइसहीं श्री प्रमोद कुमार तिवारी जी के लेख बा,हर तरह से विद्वतापूर्ण विवेचना के साथ। इ कहे में हमरा बहुते खुशी होता कि आजु से पैंसठ- सत्तर बरिस पहिले के सामाजिक ताना-बाना बेहतरीन ढंग से बुनि के,स्त्री-विमर्श पर चर्चा कइके, स्वर्गीय पाण्डेय जी भोजपुरी साहित्य में अमर हो गइल बानी।
जवना शुद्ध,आ परिपक्व भाषा के संकेत राहुल सांकृत्यायन जी कइले रहनी,पूरा उपन्यास के श्रेष्ठ बनावे में ओकर बहुत योगदान बा। साथहीं भोजपुरिया लेखन शैली के विस्तार देके पाण्डेय जी परवर्ती भोजपुरिया लेखक लो के राह आसान कई देले बानी। दुखद इहो बा कि बहुत लो एह परम्परा से आपना के,आ आपना लेखन के ना जोड़ि पावल। भोजपुरिया सिनेमा के चकाचौंध लोगन के ले डूबल। उहाँ के भोजपुरिया ग्रामीण जीवन के जवन जीवन्त बरनन कइले बानी,बेमिसाल बा। प्रकृति चित्रण के सौन्दर्य त पहिलके पंक्ति से देखल जाव-“सड़क के किनारे फूस के एगो झोपड़ी रहे। जवना पर लउकी के लतर फइल के कचमच-कचमच करत रहे। ऊजर-ऊजर फूल के साथे-साथे छोट-बड़ बतियो लागल रहे।”
इ अहसास देखीं-फसल लहलहात रहे,बयार बहला पर झूम-झूम के लोटे लागस,आ झुके लागस। अइसन बुझात रहे जइसे हमार अगवानी करतारन स। ओइसहीं, तनी इहो बिम्ब देखीं-“गेहूँ के बालिन पर ढेरका सा सोना-चानी छितरा गइल रहे।” तनी हई उपमा देखीं-“अपना कोखी के लइका लेखा किसानन के मेहर लोग कहीं कबो पवधन के अपना कोरा में ले के चूमे लागत रहे। दुलार से आपन हाथ उनकरा पर फेरे लागे लोग।”
जे लोग गाँव में,खेत-खलिहान में रहल होई,उ एह सुख के अनुभूति कर सकेला। आजु त किसान खातिर,किसान के नाम पर बवंडर मचवले बा लोग। संघर्ष बिना कहीं कुछू न होला। किसानन के सुख बनल रहे,एकरा खातिर सबका प्रयास करे के चाहीं। प्रकृति,गीत गावत मेहरारु लो के जीवन में रस घोलि देले,सब कुछ जीवन्त हो जाला आ केहू के इयादि आवे लागेला। एकर बानगी देखीं-“केराव, तीसी,मटर आ सरसो के आसमानी,उजर,बैगनी आ पीअर फूल खेत में छिंटाइल रहे। आम के बगइचा में से मोजर के गमक आवत रहे। कोइल के मीठ-मीठ बोली करेजा में तीर खानी लाग के केहू के इयाद करावत रहे।” “कोदई के अपना जवानी के दिन इयाद पड गइल।”
रामनाथ पाण्डेय जी जाड़ा,गरमी,बरसात,बसंत,शिशिर,हेमन्त हर मौसम में कोदई के जोस,जवानी,रुमानियत,सोच-विचार आ चिन्तन सब कुछ बेजोड़ लिखले बानी। गरमी के मौसम में अपना बैलन के चिन्ता रहत रहे,आ छाँह में प्रेम से बान्हि देसु। खाये के गठरी लेले आपना मेहरारु के आवत देखि के कोदई के मनोविज्ञान जागि जाये,मन हरियरा जाये,खड़ा हो जासु आ दोगिना जोस से काम में जुटि जासु ताकि उनकर मेहरारु इ ना समझसु कि कोदई अबर आ कमजोर होके थाकि जातारे। कवनो मरद आपना मेहरारु का सोझा कमजोर भइल ना चाहेला,आ मेहरारु लो भी इहे चाहेली कि हमार मरद हमेशा जवान आ मजबूत रहसु। पाण्डेय जी लिखतानी-“उनकर मेहरो कम ना रहली। –मेहरारु सभन के लजाइल बड़ा सुघर लागेला। –उनकरो लजाइल बड़ा नीमन लागत रहे।” एही ख्याल में मुनिया के इयादि आइल आ कोदई मन मसोसे लगले।
उहे मुनिया उनका के गाँव भर में सबसे अधिका चाहत रहे। परेम करत रहे। आ उहो त ओकरा पर आपन जान देत रहले। दूनो खूब आनन्द उठावत रहे। उहे कोदई आजु लाचार बाड़न आ कुछुओ नईखन करि सकत। पवधन के उदासी उनका से देखल नईखे जात।
दोसरका खण्ड में रामनाथ पाण्डेय जी कोदई से झमना के पूरा बतिआवल लिखले बानी। झमना कोदई के लइकी बिंदिया पर लट्टू हो गइल रहे बाकिर उ ओकरा के सटहीं ना दिहलस। आजु झमना कोदई के खूब कान भरता आ बिंदिया के कहानी नमक-मरिचा मिलाके सुनावता। खूब आगि लागावता। कोदई ओकरा बात में अझुराईल जातारे,दुखी होके कहले,”राम हो राम! ऊ हरामजादी अइसन हो गइल बिया?”
कोदई दुखी बाड़े कि अबले बिंदिया के बियाह ना कइके आछा ना कइनी। झमना से बोलले,”बेटा ते आज हमरा आँखि के पटर खोल देले। आ काल्ह से ते बिंदिया के खेत में ना पइबे।” झमना पहिले धक से रहि गइल बाकिर बुद्धि लगा के कहलस कि एके बार रोकब, उहो निकस गइल त मुँह में करिखा पोता जाई। झमना आपना उद्देस में सफल होके मुसकात लवटि गइल।
कोदई दुखी मन से बिंदिया के बियाह खातिर सोचे लगलन आ उहापोह में उभकत-चुभकत रहले। अंत में मने-मने तनी जोर से कहले,”ओकर इन्तजाम करे के पड़ी।” बिंदिया सुन लेलस आ पूछलस,”बाबू! बुझाता तू खिसिआइल बाड़? केकर जोगाड़ करे के बात सोचत बाड़?”
एकरा बाद बाप-बेटी के बातचीत विस्तार से लिखले बानी। केहू पढ़ी त, एह चित्रन से गदगद हो जाई। कोदई के कहला पर बिंदिया ढेंढ़ी लेके पुरोहित जी के देबे चलि गइल।
कहानी आगे बढ़ल। भगत जी अइले आ कोदई का सोझा,घुमा-फिरा के बिंदिया खातिर झमनवा के पैरवी करे लगलन। कोदई का तनी चिंता रहे कि लोग कही कि घरे में घरौंदा कई लिहलन स। भगत जी कहले कि ऊ हमार बेटा ना ह,हम त ओकरा के गोद लेले बानी। गाँव के लोग जवन कही त कही। हमनी का आपन धरम निभाई जा। भगवान त सब देखते बाड़े,उनुका से केहू कुछु ना छिपा सकेला।
भगत जी साफे झूठ बोलल शुरु कर दिहले,”गाँव भर ओकर चाल जान गइल बा। मँगरा से फँसल वाली बतिया सभकरा जबान पर बा। सनिचरी कहत रहे,देखतानी कइसे ओकर बियाह होखेला।” भगत जी कोदई के खूब डूबावे लगलन आ उहो उनकर गोड़ छान लिहले,”अब हमार लाज अपने के ही गोड़ तरे बा।”
बिंदिया आ गइल आ दूनो लोगन के बात सुने लागल। भगत जी कहले,”तनी ओकरो से आह ले लीं,ऊ का चाहतीया? आजुकल के छँवडा-छौउड़िअन के कवन ठेकान। मँगरा जोरे उ भागियो सकेले।”
बिंदिया क्रोध के मारे काँपे लागल। घर के भीतर चलि गइल। ओने ओकर सिसकी शुरु रहे। कोदई में तनिको दम ना रहे,चुपचाप ओकर रोअल सुनत रहले। गते-गते उनकर करेजा मोम खानी पिघले लागल। ओने सूरज डूबे-डूबे भइल रहले। रामनाथ पाण्डेय जी ओह घरी के प्रकृति के बदलत रंग के बेजोड़ वर्णन कइले बानी । कोदई इयादि कइले कि थाकल-हारल अइला पर मुस्कात दू गो आँखिन के देखिके हरियर हो जात रहले। बाकिर सब खतम हो गइल बा। ओने बिंदिया का करेजा में लुत्ती लागल रहे।
खेत से बुधराम अइले त मालिक का चेहरा तनिका खुश लागल। दूनो बतिआवे लगले। बुधराम खुश ना भइले कि बिंदिया के बियाह झमना अइसन बदनाम लइका से होखेवाला बा। कहलन,”अपने के जब पसन बा त हमरा भला कइसे ना होखी?”
बिंदिया कहलस,”ना बाबू,हम तोहरा के छोड़ के एको घड़ी कतहूँ ना जायेब। आपन जान दे देब बाकिर तोहरा से अलग ना हटब।”
बुधराम उपरोहित के बोला ले अइले। उहाँ का गनना देखि के पाँचवाँ दिने बियाह के दिन तय कर देनी। इहँवो पुरोहित आ कोदई के बीच के बातचीत खूब रोचक लिखाइल बा। लोगन के मनोविज्ञान आ सभकर दाँव-पेंच सुनिके केहू समझ जाई कि रुपया-पइसा खातिर सभे बुद्धि लागावेला।
बुधराम पूछले.’मालिक एतना जल्दी रानी बिटिया के बियाह काहें करल चाहतानी?” थोड़ा देर के चुप्पी का बाद कोदई कहले,”लोग कहता,बिंदिया मँगरा से फँस गइल बिया।”
बुधराम कहले,”बिटिया पर ई अछरंग लगावल सही नइखे। हम रातदिन ओकरा संगे रहिला,हमरा आँखिन का कबो धोखा ना हो सकेला।
झमन बबुआ अपने गुमान में बाड़न। मने-मने खूब पकावतारे, आ इतरात बाड़े। आकाश में चाँद देखि के झमना आपन दोस्त रमेसवा संगे खूब रस लेके बतिआवता। जब मालूम भइल कि झमना के बियाह बिंदिया से होखे वाला बा तो ओकरा नीक ना लागल। भगवान से मनावे लागल कि एकर बियाह ओकरा से ना होखे। ना त बिंदिया के आपन मेहर बना,ई गाँव भर के करेजा पर मूंग दरी। पाण्डेय जी गाँव के लोगन के नस-नस से परिचित बाड़न कि केहू,केहू का खुशी में खुश ना होला। ओने दुनो दोस्त कुछ-कुछ बतिआ के हँसत रहलन स। पूजेरी जी रमेसवा के घरे भेजि के सब राम कहानी सुना दिहले कि कइसे चउधरी बिंदिया के बियाह खातिर राजी हो गइले। झमना उनकर गोड़ पर मुड़ी राखि दिहलसि।
दूनो लोगन के बीचे बहुत बात होखे लागल। झमना साबित करे लागल कि बिंदिया आछा लइकी बिया,केहू संगे हँसला,बोलला से केहू खराब न हो जाला। आज केकर मेहर,बेटी नइखे हँसत,बोलत? त सभे का भटिये गइल बा?
“ना रे! बिंदिया अइसन गाँव के के कहो,जवार भर में नीमन एको लइकी नइखे।”
झमना के धियान गेहूँ के खेत में चलि गइल रहे। ओकरा चारो अलँग सरसो, मटर आ तीसी झूमत रहे। लाल,पीयर,उज्जर आ आसमानी रंग के फूलन के बीच में धानी रंग के लूगा पेन्हले बिंदिया घास गढ़त रहे। ओकरा हाथ के चूड़ी के झनझनइला से जवन राग इकसत रहे,ओकरा आगारी रामायन के राग फीका पड़ गइल रहे। पाण्डेय जी प्रकृति के चित्रण में खूब माहिर बानी आ अइसना में कवनो सयान लइकी के सौन्दर्य वर्णन बेजोड़ कइले बानी। झमना खूब खयाली पुलाव पकावे लागल।
ओने बिंदिया का सोझा अन्हार हो गइल। नींद लागत नइखे। खूब नीमन आ हँसोड़ लइकी जे गाँव भर के अँजोर कइले रहत रहे,अब ओकर चेहरा झँवरा गइल। उठि के बाप के गोनतारी खड़ा हो गईल, आ कहलस, “हम झमना से बियाह ना करब।” बाप खूब खिसिअइले आ भोरहीं भेजि देबे के ठानि लिहले। बिंदिया सोचलसि कि झूठे जब मँगरा संगे बदनाम बानी त काहें ना ओकरे संगे बियाह कर लीं। राते-राति मँगरा का घरे गइल आ ओकरा के तैयार कइलसि। बुधराम काका मदद कइलन आ गाँव का बहरी तक ले पहुँचा अइले। गाँव में खूब थू थू होखे लागल, सब लो झमन आ भगत के धूसत रहे। उ दूनो खूब चाल चललन स, बाकिर गाँव के लोग ओकनी के साथ ना दिहल।
कोदई का बाद में सच्चाई बुझाईल आ बुधराम का समझवला पर मानि गइले। बुधराम त सब जानते रहले,जा के बिंदिया-मँगरा के ले अइले। कोदई माफ कई दिहले। कोदई गिरे लगले त बिंदिया लपक के सम्हार लिहलसि आ मुड़ी राखि के रोवे लागल।
“चुप रह बेटी,”कोदई आपन हाथ ओकरा माथा पर ध के कहलन,”भगवान तोर सोहाग चान सुरुज अइसन अमर राखसु। “
जवना काल-खण्ड में ई भोजपुरी के पहिलका उपन्यास लिखाइल,ओह घरी इ सब बहुत बड़ घटना रहल। राम नाथ पाण्डेय जी के इ एगो निमन आ नूतन सोच रहे। प्रचलित समाज व्यवस्था पर आक्रमण रहे। आपना से कमजोर के साथ बियाह कइल आ घर से भागल बहुत बड़ बात रहे। बिंदिया हिम्मत कइलस आ अंत में ओकरा हिम्मत के समाजो स्वीकार कई लिहल। नारी- विमर्श आ सुखान्त कहानी लिखि के रामनाथ पाण्डेय जी अमर हो गइनी।
समीक्षित उपन्यास बिंदिया
उपन्यासकार रामनाथ पाण्डेय
मूल्य रु 200/-
प्रकाशक सर्व भाषा ट्रस्ट,नई दिल्ली
समीक्षक विजय कुमार तिवारी
(कवि, लेखक, कहानीकार, उपन्यासकार और समीक्षक)
BHUBANESHWAR,ODISHA
MO-9102939190
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