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पुण्यतिथि विशेष :अनिरुद्ध जी 

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भोजपुरी के वरिष्ठ आ सुप्रसिद्ध कवि / रचनाकार अनिरुद्ध जी के पुण्यतिथि पs खबर भोजपुरी पs पढ़ी इहें के लिखल कुछ बेजोड़ रचना।

अनिरुद्ध जी के जनम सारण जिला के डीही गांव में 9 मार्च 1928 के भइल रहे । बाबूजी श्री स्व. जगदेव सहाय जी उर्दू आ फारसी के बहुत बड़ विद्वान रहनी । अनिरुद्ध जी के शुरुवाती शिक्षा राजपूत हाईस्कुल आ फेरु राजेंद्र कॉलेज छपरा में भइल । आई. ए. के बाद पढाई छुट गइल । सन्‌ 1950 से 1986 तकले बेसिक स्कूल में शिक्षक के रुप में नौकरी कइनी आ फेरु 1986 में प्रधानाध्यापक के पद से रिटायर भइनी । सन्‌ 1949 से हिन्दी में लेखन आ सन्‌ 1950 से भोजपुरी लेखन जवन शुरु भइल कि अंत समय ले रहल । अनिरुद्ध जी , कविता पाठ , कवि सम्मेलन आ गोष्ठी खातिर बिहार, उत्तर प्रदेश , प. बंगाल, मध्य प्रदेश , आदि राज्यन में जात रहनी । इहां के कुछ रचना बिहार विश्वविद्यालय के आई ए आ बी ए के भोजपुरी पाठ्यक्रम में भी शामिल बा । अनिरुद्ध जी 7 मार्च 2019 के लमहर यात्रा पs चल गइनी ।

अनिरुद्ध जी के लिखल कुछ गीत कुछ दोहा पढी । नीचे उहाँ के लिखल पांच गो रचना दिहल गइल बा।

1-

पंछी चहके डेरात, कुनमुनात छवरा बा,

फुलवा महके डेरात, गुनगुनात भँवरा बा,

कुलबुलात भोर लुका, कुहरा के पहरा बा,

कुहा खुल माँझी रे, नाव खुल होसियार,

धार, लहर, जल, अकास, रँगवा चीन्हऽ बयार,

हइया रे हइया रे, भइया रे, थम्हले पतवार॥

चहचहा उड़े फर-फर, चिड़ई-मड़ई जागे,

गाय-भँइस खोल चले चरवाहा धुन रागे,

झटक चले बैला सँग, कान्हे हरवा-कुदार॥

चटक-मटक खिले कली, गमकल मग-गाँव-गली,

मतलब बहुते इयार, रसलोभी छली अली,

का सबेर दिलकली, खिले न जिया डर-अन्हार॥

प्यार धरम करम करे, हित जिनगी मेहनत बा,

बइठल मदवा स्वारथ, जियले में मउवत बा,

गैर कहाँ, के आपन, कुछ हमार ना तोहार॥

हाथ-हाथ जगरनाथ, हर देहिया खुदा एक,

एक रंग लहू हर तन, हर मजहब सदा एक,

हम सभ इनसान एक, भारत मइया हमार॥

पानी-दूधवा लजाय, भाई के खून पीअत,

धरम इहे मरदानी, अदमी ना अदमीअत,

बैरी के चाल मिलऽ, सुनलऽ भइया गोहार॥

साहस, बिसवास लगन, मिले कूल ठउआ ऊ,

जग सफर मुसाफिर हम, एक बा परउआ ऊ,

लगे जोर पहुँचा, पहुँचे नइया लगे पार॥

हइया रे हइया रे, भइया रे, थम्हले पतवार॥

2-

पहिल जोति फूटे पूरुब से, भइल जगत उजियार

बजे भैरवी किरन बेनु पंछी के बजे सितार

माथ चढ़ावे किरन बेनु पंछी के बजे सितार

माथ चढ़ावे चरन धूर नभ वन्दन करे बयार।

निराला भारत देस हमार।।

 

छउके लाल हिरन गछिया में, उतरे भोर किरिनिया

सेना के जल-परी नहाये, बने सोन्हउला पनिया

पतर अँगुरी नदी-लहर से खेलत रँगे किनार।

निराला भारत देस हमार।।

 

चानी चादर टँकल तरेंगन चाननि रात ओढ़ावे

मुकुट हिमालय पर सोना के पानी भोर चढ़ावे

बन बसतर धानी तन सोभे, गर नदियन के हार।

निराला भारत देस हमार।।

 

पग धोअत मन पगल प्रेम में, रँगल सिन्धु के पानी

टूट गइल पर झुकल कहाँ इसपात सुरुख मरदानी

सुरुज आरती लहर उतारे जगमग सोना थार।

निराला भारत देस हमार।।

 

सोरह कला चनरमा जहँवाँ अमरित बरिसे चानी

सोना बरिसे दिल अगिआ तब चमके अउर जवानी

सूर-कबीरा-तुलसी जनमे ग्यान रतन भंडार।

निराला भारत देस हमार।।

 

गुरु गोविन्द सिंह-कुँअर-बहादुरशाह-देस लछिमी के

भगत, सुभाष व लाल बहादुर बलिदानी धरती के

राम-किसुन-बुध-गाँधी बन भगवान लेत अवतार।

निराला भारत देस हमार।।

 

रन में तनल कड़ा लोहा दिल, दया फूल से कोमल

सागर अइसन हिरदय, गंगा प्रेम पबित्तर निरमल,

साहस अटल धीर अभिलाषा, नभ के छुए पहाड़।

निराला भारत देस हमार।।

 

हलधर राज जनक, किसुन चरवाहा, खेत दुल्हनिया

माटी बा सोना, मेहनत धन, बोये-काटे रनिया

झील जड़े नीलम दरपन, छवि ललचे गगन निहार।

निराला भारत देस हमार।।

 

दुख में हँसे घटा-बिजली अस झूल गइल बा फाँसी

झरे जोतिभर रात तरेंगन मुँह पर कहाँ उदासी

मन के दिया जरे आन्ही में, कहँवाँ भइल अन्हार।

निराला भारत देस हमार।।

 

साँवर-गोर राज सब रितु के हिलमिल भाई-भाई

बहुरंगी भाखा बोली जय बोल भारत भाई

मंदिल-मसजिद-गुरुद्वारा-गिरजा चौमुखी चिराग।

निराला भारत देस हमार।।

 

सोहर-झूमर-बिरहा गा-गा सूखे देह पसेना

जहाँ सरग कसमीर देस जस मुन्दरी जड़ल नगीना

गाँव-गाँव तीरथ झुक-झुक जा मड़ई देस दुआर।

निराला भारत देस हमार।।

3-

खंजन रितु दूत नयन अंजन सुखदाई

उतरल चढ़ हंस शरद स्वागत अगुआई॥

महके झर हरसिंगार, भिनुसहरा प्यारा

लाल तली चाँदी, कनफूल कि सितारा॥

पथ खुले दसो दुआर पंथी अगराइल

सोखे संताप शरद, व्याधि सीा पराइल॥

बाजे चुलबुल बिहान, प्राती धुन वीणा

भोर लुटावे बिंदिया रात के नगीना॥

खिलल कास पावस नभ धो चले बुढ़ाए

निरमल नभ नील नयन माटी मुसुकाए॥

फुदुक-फुदुक पंछी वन प्रान में समाइल

रितु-राधा अँखियन, घनश्याम अब लुकाइल॥

दुधिया चुनरी कुंडल कनक किरन झूले

नीलम नभ छत्र घाम पियरी कटि भूले॥

हिमकन मोती माला, शीत बरे हीरा

नाचत घुँघरू टूटल, भोर लगे मीरा॥

चमकत जल-देश रहे, मीन-मन पिरितिया

अनगिन अँखिया नहाय, दूध से धरतिया॥

नील रतन जल चाँदी दरपन जड़ जाए

गगन उतारे नदिया, ताल उतर जाए॥

बिछुड़ल घनश्याम, लोर-भुँइ जसुदा माई

बा झरल पसेना-मनि मेहनत-गुन गाईं॥

फुर-फुर उडत्र जाय विहग, नयन अँटकि जाए

टिटिकारत बैलन के कवन झटकि जाए॥

4

जब जब पुरवइया संदेसवा पठावे

बदरवा ई दउर दउर आवे

काजर कर साँवर बदरवा ई दउर दउर आवे

बिलमावे केहू ना,मारे जादो मंतर

परदेसी घर आवे,उमड़त हर गाँव डगर

अइसन प्रेमी केहू दीठ ना लगावे

तिरिछे लखि बिजुरी,घन घुंघुटा अइसे ताने

साजन से जइसे रूसल गोरी ना माने

बिंदिया चमके बुँदिया झाँझर झमकावे

दादुर ढोलक ढमके, झनके झिंगुर सितार

बादर के मादर प गावे मौसम मल्हार

सोहर-झूमर -कजरी खेत-खेत गावे

बदरवा ई दउर दउर आवे

5- दोहा

अन्न घुनाइल खाँखरा, फटक उड़ावे सूप।

अवगुन कौड़ा तब मिटे, बनीं सूप अनुरूप।।

 

सोना-सोना जे रटे, निनिआ भइल हराम।

मेहनत मोती जे लुटे, सुख से करे अराम।।

 

सदा सतावे दीन के, धनी अउर सउकार।

धन-बूता सोभे जहाँ, दया-छमा-उपकार।।

 

बरे बदन बाती हँसे, सिर दे करे अँजोर।

मेघ संभु धरती जहर, दिया पिये तम घोर।।

 

सँपरे कारज ना सधे, आलस रोग असाध।

फिकिर देह के घून बा, करतब वैद बेआध।।

 

जिनगी सोना जब तपे, चमके अउर सजोर।

मउअत अगिया से डरे, बचल कहाँ ऊ लोग।।

 

 

 

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