1890 में स्वामी विवेकानंद हिमालय में यात्रा करत रहले। एह दौरान स्वामी अखंडानंद भी उनका साथे रहले। एक दिन काकड़ीघाट में पीपल के पेड़ के नीचे ध्यान करत विवेकानंद के आत्मज्ञान के अनुभव भइल। सफर जारी रखत घरी अल्मोड़ा से करबला कब्रिस्तान पहुंचला पs थकान अवुरी भूख के चलते बेहोश हो गईले। एगो फकीर उनकरा के खीरा खियवलस, जवना के चलते उनुकर होश आ गईल। इs घटना उनुका जीवन के एगो महत्वपूर्ण अवुरी प्रेरणादायक कहानी बन गईल।